



तीर्थ के दृश्य व सायरस पंछी, जो साइबेरिया से हर वर्ष आते हैं। स्वदेशी चिट्ठी के पाठकों के लिए प्रकृति के कुछ नजारे व घाट के दर्शन।
आज पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार दिवसीय प्रवास पर प्रयागराज पहुंचा। दोपहर को कार्यकर्ता त्रिवेणी संगम घाट व उसके सामने स्थित हनुमानजी मंदिर ले गए। मंदिर बड़ा पुराना, ऐतिहासिक जहां हनुमान जी विश्राम अवस्था में हैं।भीड़ बहुत,भक्त बहुत, पर वहां की सफाई बिल्कुल बेकार। जगह-जगह गंदगी के ढेर। घाट पर भी आचमन करने लायक स्थिति नहीं। मन खिन्न हो गया। तभी मुझे जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन की याद आई।उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘माय फ्रोजन टर्बूलेंस इन कश्मीर’ में लिखा है कि वह 1985 में माता वैष्णो देवी के दर्शन करने गए।
जब ऊपर गुफा में पहुंचे तब तक वह वहां की गंदगी देख परेशान हो चुके थे। उन्होंने कहा “शेरों वाली माता! आज के बाद यहां नहीं आऊंगा।अगर अपने इस भक्त को बुलाना हो तो कोई अधिकार देकर बुलाना। तो मैं यह सब ठीक कर दूंगा।”
संयोग देखिए या फिर माता रानी का बुलावा।अगले ही साल कश्मीर घाटी में परिस्थितियां बेकाबू हुई तो जगमोहन को वहां राज्यपाल बनाकर भेजा गया। उन्होंने कश्मीर की कानून व्यवस्था की स्थिति तो काबू की ही साथ ही, माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड बना कटरा स्थित मां की गुफा का सारा दृश्य ही बदल दिया।
जिस जम्मू में तीन लाख यात्री ही आते थे हर वर्ष, अब वहां एक करोड़ आने लगे हैं।
मैं मंदिर से निकलते हुए यही सोच रहा था कि इस प्रयागराज को भी एक जगमोहन की जरूरत है जो इस तीर्थ की दशा ही नहीं,इस तीर्थ में रहने वाले लोगों की अर्थव्यवस्था ही बदल दे, जैसे जम्मू की बदली~सतीश कुमार
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