
दिल्ली स्वदेशी शोध केंद्र से अर्थ संचय अभियान के संचालन मे लगी टीम।
कल रात को दिल्ली के अपने कार्यकर्ता सुनील जी का फोन आया, “सतीश जी! यह जो कोरोना इतनी तेजी से बढ़ रहा है, क्या होगा? थोड़ी घबराहट हो रही है।”
मैंने कहा, “हां! यह स्वाभविक है, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर, पहले से अधिक बड़ी है।
किंतु यह भी तो देखो! अब हम पहले से अधिक तैयार हैं। पिछले वर्ष के अपने देश ही नहीं, दुनिया के भी अनुभव हमारे साथ हैं। फिर 10 करोड़ से अधिक लोग वैक्सीन ले चुके हैं। जिसके कारण से मृत्यु दर पिछली बार की अपेक्षा कहीं कम है।”
“तो हमें क्या करना चाहिए?”, उन्होँने पूछा!
मैंने कहा, “पहली बात तो है, न स्वयं घबराना न और किसी को घबराने देना। मास्क, दूरी, सैनिटाइजर का उपयोग करना, कराना। फिर लोगों को कहना की फोन, मेल व अन्य डिजिटल तरीकों का उपयोग कर गतिविधि व काम रुकने ना दें। किसी पर प्रकार की अफवाह न फैलने दें।”
“अच्छे रचनात्मक, सकारात्मक प्रयोग करने की सोचें। इस कठिनाई को कैसे अवसर में बदलें, इसका सोचें।”
“और फिर मैंने कहा स्वदेशी के कार्यकर्ता तो अभ्यस्त हैं ही। हम अर्थ संचय अभियान ले ही रहे हैं। पहले प्रत्यक्ष जा रहे थे, अब फोन व डिजिटल माध्यम से करेंगे। पिछली बार 14 लाख लोगों को स्वदेशी आंदोलन से जोड़ा था। इस बार 10 लाख लोगों से अर्थ संचय करेंगे। परिस्थिति का सबसे अधिक उपयोग तो हम स्वदेशी के कार्यकर्ता ही करने वाले हैं। क्यों, ठीक है न?”
और उन्होंने संतुष्ट भाव से नमस्ते कह फ़ोन बन्द किया।
~सतीश कुमार
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