

स्वप्ना बर्मन तिरंगा लहराते हुए व् अनुप्रिया माता पिता के संग।
इस वर्ष हुए एशियाड खेलों में पश्चिम बंगाल की जलपाईगुड़ी नामक स्थान की रहने वाली स्वपना बर्मन ने hepethlon (एक विशेष प्रकार की दौड़) में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया, भारत का नाम रोशन कर दिया!
वह एक रिक्शा चालक की बेटी है,जो कि बीमार ही रहते हैं और इसलिए उसकी माँ को घर चलाने के लिए चाय बागान में जाकर मजदूरी करनी पड़ती है।
फिर भी धन्य हैं वे माँ बाप जिनोहने उसे बड़ा बनने मेहनत करने की न केवल प्रेरणा दी, बल्कि हर संभव सुविधा भी जुटाई।
एक और भी कठिनाई थी स्वप्ना की। उसके पैर में 6 उंगलियां हैं। सामान्य जूता उसको चल नहीं सकता।और विशेष जूते के लिए पैसे होने का सवाल ही नहीं। अतः नंगे पैर ही अभ्यास किया उसने।
शायद परमात्मा भी पूरी परीक्षा लेना चाहते थे की फ़ाइनल दौड़ वाले दिन उसको दांत में बेहद दर्द उठा।पर वह कहाँ हार मानने वाली थी,थोड़ी दवाई ली पर दांत के दर्द के बावजूद गोल्ड मैडल ले आई।
स्वपना बर्मन ने पहला श्रेय अपने माँ बाप को दिया, अतः स्वप्ना व् उसके माता पिता को नमन।
तमिलनाडु की केवल 8 वर्ष की बच्ची अनुप्रिया ने तो और भी प्रेरक काम किया। उसने अपने लिए एक बढ़िया साइकल लेने के लिए अपनी गुल्लक में 9000 रूपए जोड़े थे। इधर इन्ही दिनों केरल में बाढ़ आ गयी। टेलीविजन पर लगातार समाचार आ ही रहे थे।
इस बच्ची ने अपने माता पिता से गुल्लक के सारे पैसे बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु देने को कहा। माता पिता ने भी ठीक समझा और पैसे भेज दिए।
पड़ोस में ही रहने वाले एक सज्जन श्रीनिवास को यह बात ध्यान में आ गयी। उसने इसे ट्वीट कर दिया।समाचार वाइरल हो गया।
समाचार देख Hero Motors ने घर जाकर उस बच्ची को वैसा ही सायकल गिफ्ट किया। लेकिन जब Hero वालों ने 9000रूपए भी बच्ची को देने चाहे तो उसके माँ बाप ने यह कहते हुए इंकार कर दिया की बचों में ये आदत व् संस्कार रहने ही चाहियें।
मै सोच रहा था, की अगर स्वप्ना बर्मन व अनुप्रिया के माँ बाप जैसे संस्कार भारत का हर परिवार देने लगे तो भारत का परमवैभव आने में देर लगेगी?बिलकुल नहीं।
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