
वरिष्ठ प्रचारक सरोज दा, अ.भा. संगठक कश्मीरी लाल जी, कार्यालय प्रमुख बलराज जी व मुझे राशि सौंपते हुए।
आज कश्मीरी लाल जी, सरोज दा के साथ दिल्ली में बनने वाले नए स्वदेशी भवन बारे चर्चा हो रही थी। कहां कहां से योगदान आना शुरू हो गया है, कहां कहां बात करनी है? आदि…।
तभी सरोज दा बोले, “अरे! मेरे से अभी ₹50,000 ले लो।”
कश्मीरी लाल जी ने कहा, “आप तो प्रचारक हैं, कोई कमाई का सवाल ही नहीं, फिर कैसे?”
सरोज दा बोले, “उड़ीसा में परिवार वालों ने मेरे लिये बहुत पहले कुछ राशि व जमीन मुझे दे दी थी। जमीन पर तो पहले ही संघ कार्यालय बनवा कर दे चुका हूं। अब इस शोध संस्थान हेतु बन रहे भवन के लिये भी अपना योगदान क्यों न दूं? मैंने वैसे भी अब इन पैसों का क्या करना है?”
सरोज दा 84 साल के हैं। जीवन दिया, मकान दिया, धन दिया…स्वदेशी को, देश को! और मैं कम से कम 2 और प्रचारकों को जानता हूं जिन्होने ऐसे ही इस नए स्वदेशी कार्यालय के लिए परिवार से आये पैसे में से राशि दी है।
शाखा मे गाये गीत, को आज प्रत्यक्ष साकार होते देखा। वह गीत है…
“तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित!
चाहता हूं, देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं …!”
~सतीश कुमार
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