

2011,नवम्बर मध्य में एक दिन मै संगरूर गया।वहाँ के बड़े वकील व् उनकी धर्मपत्नी जो प्रोफेसर हैं व् दूर के रिश्ते में अपने इन्द्रेश जी की बहिन लगती हैं,से मिलने। दरवाज़ा खुलते ही बहिन जी को अपने सहप्रान्तप्रचारक होने का परिचय दे बैठ गया।वे बात शुरू होते ही फफक कर रो पड़ीं!कारण था उनका एकमात्र बेटा जो मुम्बई IIT से 2 मास पहले डिग्री लेकर संघ का प्रचारक बन नागपुर चला गया था। माँ बाप ने बड़े बड़े सपने सँजोए थे उसके बारे में! मेरे साथ गये कार्यकर्ता के थोडा बात करने पर सहज हुईं! वे मेरे से आश्वासन चाहती थीं की वह 1 वर्ष बाद वापिस आ जाय। मैने कहा “माँ,मै तो खुद 30 वर्षों से प्रचारक हूँ,ऐसा आश्वासन कैसे दे सकता हूँ”?उस माँ के आंसू देख मै खुद भावुक हो बैठा।लेकिन आज 6 वर्ष बाद पति-पत्नी आश्वस्त व् प्रसन्न हैं! नागपुर जाने के बाद व् सब विषय को समझ, पुत्र के जीवन संघ में लगाने के निर्णय को सौभाग्य मानने लगे हैं। सरसंघचालक भी उनके घर एक बार हो आये हैं। उनकी एक बेटी भी है जो MBBS,MD है।
2001 में कुछ ऐसा ही फरीदाबाद के अपने वि…जी जो Engg. की डिग्री कर प्रचारक निकले, उनकी भी कुछ ऐसी परिस्थिति रही। बड़ा बेटा होने से परिवार की बड़ी अपेक्षाएं। नाराज़गी, विरोध पर अंततः राष्ट्रकार्य की स्वीकार्यता व् प्रसन्नता।धन्य हैं माता पिता,जो अपने योग्य पुत्र को राष्ट्रकार्य में समर्पित कर प्रसन्न रहते हैं!
संघ में प्रचारक परम्परा की विधिवत शुरुआत पूज्य गुरूजी ने करवाई। पुरानी परम्परा को आधुनिक रूप देते हुए संघ को चतुर्दिश फ़ैलाने को इस पद्धति (प्रचारक) को शुरू किया। आज देश में कोई 3000 प्रचारक हैं जो किसी भी स्थान व् किसी भी संगठन में काम करने को प्रतिबद्ध हैं…तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित…चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ…
Leave A Comment