संजीव जी
कुछ दिन पहले अंबाला जिले की बैठक में, मैं अपने अखिल भारतीय सह संगठक सतीश जी के साथ था। युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना, इस विषय पर भी बातचीत चल रही थी। तभी मुलाना (अंबाला) के महाराणा प्रताप कॉलेज की प्रिंसिपल राजश्री खरे जी ने बताया, “भाईसाहब, यह तो कुछ भी नहीं! हमारे कॉलेज में 3 साल पहले संजीव नाम का एक लड़का, लैब टेक्नीशियन की नौकरी करता था। उसने अपनी नौकरी छोड़ी एवं स्वरोजगार के माध्यम से अब लाखों नहीं, करोड़ों कमा रहा है!”
सतीश जी ने पूछा, “अरे वो कैसे? थोड़ा विस्तार में बताइए।”
तो बैठक के बाद उन्होंने उसी संजीव से फोन पर सतीश जी की बातचीत करवाई।
संजीव जी ने बताया, “हम तीन भाई हैं, पिताजी BSNL से रिटायर हुए हैं। हमारी अपनी जमीन है, लेकिन मैं नौकरी के चक्कर में पड़ गया। शुरू में मुझे केवल 8 हजार की नौकरी मिली। बाद में एक कॉलेज में मुझे 15 हजार की भी नौकरी मिली। लेकिन मुझे ध्यान में आया, कि इतनी सी सैलरी से मैं कुछ बड़ा नहीं कर सकता। मैंने नौकरी छोड़ने का मन बना लिया और अपने गांव लौट आया।
मेरे भाई के एक दोस्त ने बताया कि मशरूम की खेती में बहुत फायदा है। मैंने अपनी जमीन का अध्ययन किया और 2 एकड़ जमीन पर 8 चैंबर लगाए। कुछ लोन भी लिया, और कुछ पैसे पिताजी की पेंशन से जुटाए। दिन रात मेहनत की, और केवल 2 साल में मुझे यह परिणाम मिला। अब मैं अच्छा कमा रहा हूं। मेरे यहां कुल 49 लोग काम करते हैं। जिसमे 9 हजार रुपए से लेकर 45 हजार तक की सैलरी में उन्हें देता हूं। कहां तो मैं स्वयं 10-12 हजार की नौकरी करता था, लेकिन अब 45 हजार रुपए तक का भी रोजगार मैं दे रहा हूं।”
यह सारी बातचीत सुनने के बाद मैं सोच रहा था, कि हम सब युवा अगर संजीव जी की तरह केवल स्वयं को ही नहीं, दूसरों को भी रोजगार देने वाले बनें, तो बेरोजगारी को समस्या दूर होने में समय नहीं लगेगा।
~ स्वदेशी एजुकेटर की कलम से
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