
कमलजीत जी, विकास जी, कमल तिवारी जी व निखिल जी, अर्थ संचय हेतु जब फ़ोन कर रहे थे तो मैंने फोटो खींच लिया।
आज दिल्ली कार्यालय पर दिल्ली स्वदेशी की प्रांत टोली रँग लगाने आयी। कमलजीत जी ने सहज पुछ लिया, “अभी तक अपने बनने वाले नए स्वदेशी भवन के लिये कितने पैसे इकट्ठे हुए हैं?”
विकास जी बोले, “अभी तक तो बहुत ही कम हुए हैं। आगे चल के देखेंगे। आज तो होली है, आज पैसों की बात?”
कमल जी ने कहा, “शुभ दिन है, शोध संस्थान हेतु अर्थ संचय भी शुभ विषय है, अपने कार्यकर्ताओं से तो फ़ोन पर भी ले सकते हो।”
कमल तिवारी जी ने कहा, “हो तो सकता है।”
और तीनों लग गए फ़ोन करने।
“आपके 51000 ठीक हैं, सत्यवान जी?”
“ठीक है। पर बेटे की शादी है, उसके नाम के भी 21,000 लिखो।” सत्यवान जी फ़ोन के दूसरी तरफ से बोल रहे थे।
खैर! 2 घन्टे फ़ोन कर जब जाने लगे तो मैंने पूछा, “कितना हो गया?…फ़िर मैंनें सूची देखी, “7 लाख 82 हजार।”
मेरे मुंह से निकला, “वाह! शाबाश।”
कमल तिवारी जी बोले, “संग्रह का बड़ा लक्ष्य है, दिल्ली प्रांत का, अभी तो यात्रा शुरू हुई है, पर शुरुआत अच्छी हो गयी, होली के पावन दिन होली भी, अर्थ संचय भी।”
जय स्वदेशी जय भारत।
~सतीश कुमार
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