


परिवार में रोहित जी के पिताजी, भाई, जीजा के साथ कश्मीरी लाल जी, रोहित व दोनों बेटियाँ (पुराना चित्र) और गुड़िया काशी गायत्री मंत्र सुनाते हुए
कल हम कुरुक्षेत्र में रोहित सरदाना के घर गए। भारी मन से बातचीत हुई। पहले पिताजी, फिर भाई, बाद में माताजी, बहन, पत्नी, छोटे बच्चे…सब बारी बारी बात कर रहे थे।
एक बोलते हुए रोता, तो दूसरा शुरू होता, फिर उसके बाद तीसरा…यह सबसे कठिन समय है, परिवार के लिये। किंतु मैंने महसूस किया अपेक्षाकृत परिवार संभला हुआ था। क्यों? क्योंकि दो भाई, उनकी पत्नियां, बहिन व उसके पति, रोहित की पत्नी उसके बच्चे, माता पिता सारा ऐसा एकजुट परिवार है, और आपस में इतना स्नेह है, आत्मीयता है… कि कम से कम पत्नी व बच्चों को यह नहीं लग रहा कि हमारा आगे क्या होगा? और माँ बाप को सारे बच्चे सामने दिख ही रहे हैं।
हमारी मजबूत परिवार परम्परा की बड़ी देन है यह।
भाई तो स्वयंसेवक है ही, उनका व्यवहार भी वैसा होना ही था। किंतु पत्नी भी जब पैर छूने को आई तो लगा कि उसके संस्कार भी पूरे हैं। बच्ची ने गायत्री मंत्र सुनाया ही।
मुझे लगता है कि विश्व में यह मजबूत परंपरा, हिंदू समाज की बड़ी विशेषता है। बहुत सी कठिनाईयां इसी अपनेपन व परिवार की एकता के कारण से कम हो जाती हैं या सहन हो जाती हैं। तथा कथित आधुनिकता या प्राईवेसी के नाम पर उसमें क्षरण न आने दें… ओम शांति!
~सतीश कुमार
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