बड़ी पढ़ाई,पारिवारिक पृष्ठभूमि या बाप दादा का पैसा नहीं भी है,तो भी आर्थिक सफलता की उचांईयों को छूना संभव है,ऐसा ही उदाहरण है श्री संजयराय!
कल संयोग से गुरूग्राम के संजयराय जी के घर कश्मीरीलाल जी के साथ जाना हुआ! वे अपने स्वयंसेवक जो हैं!
मैने उनका आलीशान घर देखा तो पूछा “संजयजी, आपने पढ़ाई क्या की है? आपकी सफलता का राज क्या है?”
“अरे भाईसाहब, मैं तो केवल 10वीं पास हूँ! हम वैसे तो ग़ाज़ीपुर के पास गाँव के हैं! पर पिताजी व चाचा काम के चक्कर में तिनसुकिया(आसाम)चले गए! अच्छी कमाई थी! पर 1986-87में उल्फ़ा आतंकियों ने चाचा की हत्या कर दी! रातोंरात सब कुछ छोड़ भागना पड़ा” संजयजी अपने बारे में खुलकर बोल रहे थे!
“एक गुजराती,जो पिताजी के मित्र बन गए थे, उनके साथ कच्छ पहुँच गए! ग़ुरबत परेशानियों ने घेर लिया! मैनें 10वीं पास करते ही एक गार्ड की नौकरी कर ली! पहली तनख़्वाह थी 350रूपये मासिक!”
“फिर एक रैस्टोरैन्ट में बर्तन धोने का काम किया!इसी समय मैने समय निकालकर ड्राईवरी सीख ली! व एक प्राइवेट आयल कंपनी के यहाँ आयल टैंकर चलाना शुरू किया! पर मेरे मन में एक बात बडी पक्की थी!कभी न कभी मैं भी मालिक बनूँगा,सम्पन्न बनूँगा, पर अपनी मेहनत से, गल्त तरीक़ों से नहीं! मुझे घर व संघ से यही संस्कार मिले थे”
“बस भाग्य ने साथ दिया, माता पिताजी का आशीर्वाद! मैं ड्राईवर से अनेक ड्राइवरों का सुपरवाईजर बना! मेरी मेहनत व सूझबूझ देखते हुए कंपनी के मालिक ने जूनियर मैनेजर बना दिया! बाद में थोड़ा मनमुटाव भी हुआ,पर अन्तत:उसने मुझे कंपनी में एक छोटी हिस्सेदारी दे दी! मेरा सपना साकार हुआ, कभी गार्ड की नौकरी करने वाला एक आयल कंपनी का मालिक(हिस्से का) बन गया”
“बस फिर तो मैने पीछे मुड़कर नहीं देखा, दिनरात मेहनत करता गया! अब मेरी 7 कंपनियाँ हैं!यहाँ तक की 2012 में मेरा नाम बिलेनियर्स की सूची में भी आ गया!”
“कभी झटका भी खाया!” मैने सीधा सवाल दागा
“हाँ!चार वर्ष पूर्व जब कच्चे तेल के दाम तेज़ी से गिरे, तो मैं भारी क़र्ज़ में डूबने लगा! NPA के कगार पर भी पहुँचा! पर पिताजी,पत्नि व परिवार ने पूरा मानसिक सहारा दिया,और अब तो मैं फिर पूरी तरह सँभल गया हूँ “
“आगे की योजना क्या है?”मैरी जिग्यासा थी
“अपने ग़ाज़ीपुर के पैतृक गाँव से ग्रामीण विकास व रोजगार पर काम करने की इच्छा है! सोलर चर्खे का विचार, जिसमें अब 3000 चर्खे चलाकर ग्रामीण महिलाएँ रोजगार पा रहीं हैं,मेरा ही था!”
एक सफल व्यक्तित्व से मिलकर हम सोचने लगे “देश के युवा देर क्यों कर रहे हैं, ऐसा ही सोचने, बनने में?”~ ‘स्वदेशी-चिट्ठी’