कल मैं दिल्ली के केशव पुरम विभाग के कार्यकर्ताओं के साथ बैठा था!सहविभाग संयोजक कमल जी के घर पर सब का भोजन था!
कमल जी की बेटी जब जलपान देने के लिए आई तो मैंने उससे पूछा “क्या नाम है तुम्हारा,कौनसी में पढ़ रही हो?” वह बोली “कामाक्षी नाम है,और नोवी में पढ़ रही हूं!”
मैंने पूछा “कामाक्षी का अर्थ क्या है और कामाख्या देवी का मंदिर कहां स्थित है?”
तो उसने पापा की तरफ देखा और कहा “पापा को पता होगा!” ‘पापा ने कहा “यह नाम तो इसकी मम्मी ने रखा है उसको पूछो” जब उसकी मां भी आई तो सब ने स्वीकार किया कि उन्हें यह तो पता है कि कामाख्या देवी का मंदिर यह गुवाहाटी,आसाम में है पर कामाख्या देवी की कथा नहीं पता!
तो मैंने उस बेटी को शिव पार्वती की वह कथा जिसमें पार्वती राजा दक्ष के द्वारा आयोजित कुंड में कूद जाती है व शिव उसकी देह लेकर घूमते हैं!विष्णु बाद में सुदर्शन चक्र चला खंड खंड करते हैं और उससे बने 52 शक्तिपीठों के बारे में बताया!!
बाद में चर्चा चली कि बच्चे आजकल कंप्यूटर व मोबाइल में लगे रहते हैं इससे उनको संस्कार नहीं मिल पाता!
मैंने कहा “नहीं यह सत्य नहीं है,अगर हम बच्चों को रुचिकर ढंग से,नई तकनीक के माध्यम से संस्कार देंगे तो बच्चे बहुत अच्छे से उसको स्वीकार भी करेंगे”
मैंने उन्हें याद दिलाया कैसे रामायण सीरियल जब आता था तो लोग बस से रोक कर भी टेलीविजन पर राम कथा देखने लगते थे!इसी तरीके से छोटा भीम यह सीरियल बच्चों में बहुत ही पॉपुलर हो गया था!
“सवाल यह नहीं है कि बच्चे सीखते नहीं हैं,बच्चों में संस्कार नहीं आते! क्या हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि बच्चों में अच्छे संस्कार अनौपचारिक ढंग से,नई तकनीक से, रुचिकर ढंग से आऐं?यह अगर हम ध्यान रखेंगे तो निश्चित रूप से हमारे बच्चे यह हम से कहीं अधिक बुद्धिमान तो है ही वह संस्कारों में भी हम से अधिक परिपक्व बनेंगे”
स्वदेशी चिट्ठी~सतीश