जिस वरिष्ठ प्रचारक ने मुझको संघ की गट पद्धति से लेकर विभाग प्रचारक तक की कार्यपद्धति व प्रशिक्षण दिया,आज वह चुपचाप इस दुनिया से चले गये!
मैं अभी देख रहा था, Facebook पोस्ट पर,बहुत लोगों ने ‘बहुत दुख है’ या ‘RIP’ यह लिख रखा है! लेकिन मैं सोच रहा हूं कि इस पर दुख की क्या बात है?
ऐसा जीवन जिसने सैकड़ों कार्यकर्ताओं को प्रेरणा दी हो, ऐसा जीवन जिसने दिनरात एककर, राष्ट्र सेवा में अपने आप को समर्पित किया हो,इससे बढ़िया जीवनयात्रा और किसकी हो सकती है?
इसलिए एक प्रचारक का जाना, यह दुख का नहीं संतोष व गर्व का ही विषय हो सकता है!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जिस प्रचारक परंपरा को प्रारंभ किया वह भारत में ही नहीं,अपितु दुनिया के इतिहास में अनुपम व अद्वितीय है!आज जो संघ के 50 से अधिक संगठनों सहित राष्ट्रीय वटवृक्ष खड़ा हुआ है और संपूर्ण भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने में जुटा है,उसकी रीड़ की हड्डी,यह प्रचारक परम्परा ही तो है!
मुझको बनाया, उभारा, मेरी तरह और भी बहुतों को संघ सिखाया, ऐसे मेरे ताऊजी आज चले गए हैं!हम उनके जीवन से प्रेरणा पाएं…
संघ किरण घर घर देने को,
अगणित नंदा दीप जले!
मौन तपस्वी साधक बनकर,
हिमगिरि सा चुपचाप गले!!
नीचे लाइक दबाने में संकोच ना करें,RIP तो बिल्कुल ना लिखें!ओम शांति अथवा ‘प्रेरक’ यह लिख सकते हैं!!
(नीचे का चित्र 4 मास पहले,जब मै ताऊ जी का हालचाल पूछने रोहतक कार्यालय गया था तब का है, साथ में सुनीलजी)
स्वदेशी चिट्ठी~ सतीश