परसों मैं कर्नाटक उत्तर के केंद्र हुबली में था।अन्य कार्यक्रमों के अतिरिक्त वहां एक पुराने स्वयंसेवक मिले। जो आजकल 7..8 महीने अमेरिका में रहते हैं। किंतु उनकी आत्मा यहां हुबली, कर्नाटक में बसती है।
इसलिए 60 साल की आयु पार होने के बाद उन्होंने भारत में ही एक स्टार्टअप ड्राइव यू में बड़ा इन्वेस्टमेंट किया है।यह रोजगार देने का एक बड़ा साधन भी है। जब हमारी खुली चर्चा हुई तो मैंने पूछा “आपका उद्देश्य धन कमाना है या कुछ और?”
वासु जी बोले “मेरे पास पर्याप्त धन है।बच्चे सेटल हो गए हैं।अभी मुझे धन कमाने की तो इच्छा है ही नहीं। मुझे अपने लोगों को रोजगार देना यह सबसे बड़ा काम लगता है। इसीलिए मैं 30-40 लोगों को यहां से अमेरिका ले गया हूं।”
फिर मैंने कहा “सामाजिक प्रतिष्ठा की इच्छा तो होगी?
इस पर वह बोले “सतीश जी! मुझे अपने युवाओं को रोजगार देने का विषय इतना प्रिय है कि मुझे कोई कहे कि नोबेल पुरस्कार चाहिए या युवाओं का रोजगार तो मैं युवाओं के रोजगार को प्राथमिकता दूंगा।”
तब मैंने उन्हें अभिनंदन करते हुए कहा कि “आप स्वावलंबी भारत अभियान के सबसे उपयुक्त कार्यकर्ता हैं।”
विनम्रता वश वे झुक कर बोले “जैसा संगठन कहेगा,मैं वैसा कार्य करने को तैयार हूं।” स्थानीय संघचालक जी व स्वदेशी के कार्यकर्ताओं से मैंने उनकी बात करवा दी। किंतु मैं सोच में था कि यह कितना पवित्र कार्य है जिस पर लोग उच्च पुरस्कार को भी बलिदान करने को तयार हैं?…सतीश कुमार
जय स्वदेशी जय भारत