कोका कोला का जनक कभी नीबूं शिकंजी बेचता था!
अमेरिका में मैक्डोनाल्ड का मालिक कभी ढाबा चलाता था!
Ford का मालिक कभी मकैनिक था!
मैं स्वयं चक्कर में पड़ गया हूँ,कि कहीं ‘स्वदेशी चिट्ठी’ में लिखी जाने वाली सक्सेस स्टोरी से प्रभावित होकर,व उसे मात देने के लिए ही तो नहीं राहुल ने बयान दिया है?
क्योंकि अपनी चिट्ठी में मैं जब लिखता हूँ कि वो IAS ऑफ़िसर कभी मज़दूर था या अमुक अरबपति कभी ड्राइवर था तो आज के बाद क्या लिखूं?लेकिन मैं तो सारे facts देखने के बाद ही लिखता हूँ! ख़ैर…
यह पहला मौक़ा नहीं है जब राहुल गांधी ने अपने शोधपत्र देश को पढ़ाए हों..
गुजरात में…“कभी ऐसी मशीन बनाऊंगा जिसमें एक तरफ़ से आलू डालो तो दूसरी तरफ़ सोना निकलेगा…”
एक दिन बोले..”आखिर राजनीति कहँ नहीं है.. ये तुम्हारे कमीज व पैन्ट मे भी है..
तो कभी दलितों को ‘जुपिटर स्पीड'(किसी को पता है, ये क्या होती है?)से आगे बढ़ना होगा…
तो कभी…“ग़रीबी, तो केवल तुम्हारे दिमाग़ में है…a state of mind है”…
लेकिन सवाल है “आख़िर इस बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के नेता इस देश को अपने ऐसे ज्ञान से कब तक लाभान्वित करते रहेंगे?एक फ़िल्म का गीत सुना था “सात अजूबे इस दुनिया में…आठवें…?(राहुल गांधी)
वैसे आज की तपती गर्मी में ऐसी entertainments से कुछ ठंडक पड़ती हो तो राहुल जी का धन्यवाद नहीं करना चाहिए…?
जय हो…(कृपया कोई बुरा ना मानें…ज़िंदगी में कभी..कभी..)
~स्वदेशी चिट्ठी