3 दिन पहले मैं हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में अपने एक कार्यकर्ता के निवास पर लान में बैठकर एक किताब पढ़ रहा था।
तभी चाय आ गई। साथ में 8-10 बिस्कुट भी थे। उसी समय एक कौवा आ गया। मेरी साथ वाली कुर्सी पर ऊपर आ बैठा। मुझे लगा वो भूखा है। तो मैंने एक बिस्कुट डाला। उसने तुरंत खाया, फिर दूसरा,तीसरा चौथा।तब मैंने उसको कहा “भाई!कुछ मेरे लिए भी छोड़ेगा कि नहीं?”
खैर! मैंने उसको उड़ाया पर वह उड़ कर साइड वाले टहनी पर बैठ गया। वह बिल्कुल भी डर नहीं रहा था फिर मैंने उसके फोटो लेने शुरू की है तो वह अलग-अलग अपने पोज दे रहा था। कभी मुझे प्रणाम करता था,कभी कहता था “खींच लो फोटो सतीश जी! जब प्यार किया तो डरना क्या?”
मैं सोच में था कि यह उड़ता नहीं,क्यों? क्योंकि उसको मालूम था कि मैं उस को बिना शर्त या अपेक्षा के प्रेम पूर्वक खिला रहा था।
मुझे एक पुरानी घटना याद आई। जगाधरी जिले में एक कार्यकर्ता हैं रजनीश जी। उसके बड़े भाई शारीरिक और बौद्धिक रूप से अपंग थे। किंतु मां इन तीनों भाइयों में सबसे अधिक प्यार उससे ही करती थी। हमको भी जाते ही कहती थी “देखो! यह मेरा बेटा कितना समझदार है…आदि।”
क्योंकि मां को जो बेटे से प्रेम होता है,उसमें रत्ती भर भी अपेक्षा या कोई शर्त नहीं होती। इसलिए मां बेटे का संबंध बहुत उत्तम और सुखद होता है।
किंतु जब हम प्रेम के साथ कही या अनकही शर्त और अपेक्षा जोड़ देते हैं,तब प्रेम सौदेबाजी बन जाता है। आपस में तनाव होने लगते हैं।
अक्सर पति- पत्नी या निकट संबंधियों, मित्रों में आमतौर पर यह होता है, कि बहुत बार वे समझते तो यह हैं कि हम प्रेम कर रहे हैं किंतु वास्तव में प्रेम के साथ वे अपेक्षाएं और शर्तें जोड़ बैठते हैं। तब प्रेम सौदेबाजी बन जाता है
फिर सौदेबाजी में कौन दूसरे से अधिक निकलवा पाता है या अपनी बात मनवा लेता है,यह प्रमुख विषय हो जाता है।इस सौदेबाजी में व्यंग करना, शब्दजाल, चालाकियां प्रमुख हथियार होते हैं। जिसका अंत केवल एक दूसरे को दुख पहुंचाने में ही होता है।इसलिए प्रेम की अनिवार्य शर्त है उसमें किसी प्रकार की अपेक्षा या शर्त ना जोड़ी जाए। तब देखिए किन्ही दो संबंधों में इस प्रकार का अपेक्षा रहित प्रेम यह सर्वोच्च सुखदायक होता है।
मेरे मित्र कौवे के विभिन्न पोज़, आप भी देखिए ~#सतीशकुमार
३ वर्ष पूर्व लिखी चिठ्ठी