परिवार भाव से ही बढ़ रहा स्वदेशी का कार्य।
आज मैं बेंगलुरु एयरपोर्ट पर उतरकर मैसूर मेले के उद्घाटन हेतु निकला। स्वदेशी मेला प्रमुख शचींद्र बरियार जी साथ चले।ले जाने वाले कार्यकर्ता ने बताया कि आपका दोपहर का भोजन स्वदेशी की अखिल भारतीय महिला सहप्रमुख रश्मि विजय जी के यहां पर है।रास्ते में ही उनका नगर मांड्या पड़ता है।
जैसे ही हम वहां पहुंचे,और भोजन के लिए बैठे तो बहनजी की आत्मीयता झलक रही थी।पता ही नहीं लग रहा था कि सोनीपत में दीक्षा बहन जी भोजन करवा रही हैं, सवाई माधोपुर में अर्चना जी या यहां दूर मैसूर में रश्मि विजय
वही आग्रह पूर्वक अधिक खिलाना, वही बाद में अपने से थाली न उठाने देना और फिर भी कहना “खाना अच्छा नहीं लगा क्या?” यानी अभी और खिलाना चाह रही थी।
मैं सोच में था कि यह परिवार की कैसी संस्कृति विकसित हुई है हमारे संगठन में?
वहां तेजस्वी पूर्णकालिक भी था। मैंने देखा वह और रश्मि बहन जी एकदम घुट घुट कर बातें कर रहे थे। जैसे कोई बुआ भतीजा ही हों। तो मैंने पूछ लिया “बहनजी!क्या कभी यह तेजस पहले भी आपके यहां आया है?”
वे बोलीं “नहीं! लेकिन अपना पूर्णकालिक है तो उससे बढ़िया रिश्तेदार कौन है? मेरा बेटे जैसा ही है यह।मैं मुस्कुराया और स्वीकार किया कि ऐसे प्रेम,और परिवार भाव के कारण से ही स्वदेशी का कार्य सारे देश में बढ़ रहा है।जय हो…
सायं मैसूर में बहुत सफल मेले का उद्घाटन किया।इसमें अयोध्या में राम जी की मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज मुख्य अतिथि थे।
