• joinswadeshi2020@gmail.com
  • +91-8814038140
3:10 am October 4, 2023

विश्व व्यवस्था के लिए खतरा है चीन

चीन ने हर बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय हितों के खिलाफ कार्य किया। चाहे पाकिस्तान स्थित आंतकवादियों का बचाव हो या फिर पाकिस्तान को आर्थिक प्रतिबंधों से बचाना, हर बार चीन बेशर्मी के साथ वैश्विक मनोदशा की परवाह न करते हुए अपनी कुत्सित चालें चलता रहा। — दुलीचन्द कालीरमन

वर्तमान भारतीय सामरिक परिदृश्य सर्वाधिक चुनौती भरा है क्योंकि भारत की सेनाओं को चीन और पाकिस्तान दोनों मोर्चों पर अपनी रणनीतिक तैनाती करनी पड़ रही है। गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद तो चीन से तनातनी का स्तर निरंतर खतरनाक स्तर तक बढ़ता चला जा रहा है। इस बीच सैन्य स्तर पर कई वार्तायें हो चुकी है लेकिन उनसे ठोस परिणाम नहीं निकले हैं। सैनिक, कूटनीतिक प्रयासों के समानान्तर राजनीतिक स्तर पर भी वार्ता चल रही हैं। इसी कड़ी में मास्को में आयोजित एस.सी.ओ. की मीटिंग के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपने समकक्ष चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंगहे से मुलाकात कर चुके हैं। हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी मास्को में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात कर सीमा पर बढ़ते तनाव को लेकर वार्ताएं की हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।

चीन ने 20वीं सदी के आखिरी कुछ दशकों तथा 21वीं सदी के शुरुआती दशक में अपनी ताकत बढ़ा ली है। पिछले कुछ वर्षों से चीन का आक्रामक चरित्र दुनिया के सामने आना शुरू हो गया है। यह आक्रमक रुख सिर्फ सैन्य स्तर पर ही नहीं बल्कि व्यापार तथा रणनीतिक निवेश के माध्यम से भी विश्व व्यवस्था में अपना वर्चस्व स्थापित करने की मंशा हेतु किया गया है। अपनी विशाल सैन्य शक्ति और आर्थिक ताकत के बल पर उसने सबसे पहले दक्षिण चीन सागर में स्थित अपने छोटे-छोटे पड़ोसी देशों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था। यह देश चीन के विरोध में इकट्ठे न हो सके इसलिए कुछ आर्थिक रूप से कमजोर देशों को चीन ने निवेश के नाम पर अपने चंगुल में फंसा लिया था। इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के नाम पर चीन ने भारत के चारों तरफ के पड़ोसी देशों में बंदरगाहों के विकास के नाम पर अपने नौसैनिक ठिकाने बनाने शुरू कर दिए। जिसे “मोतियों की माला“ का नाम दिया गया। इनमें बर्मा में स्थित सीत्वे बंदरगाह, बांग्लादेश के चिटगांव श्रीलंका के हब्बंटोटा और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह शामिल हैं।

कूटनीतिक मोर्चे पर भी चीन ने हर बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय हितों के खिलाफ कार्य किया। चाहे पाकिस्तान स्थित आंतकवादियों का बचाव हो या फिर पाकिस्तान को आर्थिक प्रतिबंधों से बचाना, हर बार चीन बेशर्मी के साथ वैश्विक मनोदशा की परवाह न करते हुए अपनी कुत्सित चालें चलता रहा। आर्थिक मोर्चे पर भी चीन के साथ भारत का व्यापार  घाटा चीन के पक्ष में ही रहा। एक दुश्मन देश के साथ ऐसा होना गंभीर मुद्दा है। पिछली सरकारें यह मान बैठी थी कि चीन को व्यापार में फायदा पहुंचा कर हम चीन सीमा पर तनाव को कम कर सकते हैं। लेकिन यह गंभीर भूल साबित हुई। इससे चीन को मजबूती मिली और हमारी आर्थिक स्थिति भी कमजोर हुई। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन स्थिति की भयावहता को समझ चुके थे तथा निरंतर समाज में सरकारों का ध्यान इस तरफ दिला रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस खतरे को समझा तथा “आत्मनिर्भर भारत अभियान“ के माध्यम से एक राजनीतिक दिशा देने का प्रयास किया लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

चीन की कुत्सित चालों और मानवता को धिक्कारती उसकी रणनीति के निम्न स्तर का यह उदाहरण है कि जब उसके द्वारा विश्व में फैलाये “कोरोना-19 वायरस“ के कारण दुनिया महामारी से जूझ रही है। विश्व के ज्यादातर सरकारें अपने संसाधन अपनी जनता की प्राण रक्षा के लिए चिकित्सा क्षेत्र में लगाएँ हुए हैं ठीक उसी वक्त  चीन विश्वयुद्ध की हुंकार भर रहा है। यह नैतिकता के पतन की पराकाष्ठा है।

आज विश्व के सभी देश प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चीन की चालों  से आशंकित हैं। विश्व की महाशक्तियां और विकसित देश भी वस्तु स्थिति को देख रहे हैं। चीन में लोकतंत्र नहीं है। मानवाधिकार, पर्यावरण सुरक्षा व नागरिक अधिकारों से वंचित करने वाली कम्युनिस्ट सत्ता विश्व व्यवस्था के लिए खतरा है। खतरा सिर्फ भारत के लिए ही नहीं है अपितु विश्व के सभी लोकतांत्रिक और मानवीय अधिकारों पर आधारित व्यवस्था की रक्षा के लिएचीन जैसी आसुरी शक्ति के खिलाफ एक साथ खड़ा होना होगा।

इस दिशा में कुछ प्रयास पहले से ही भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच हिन्द प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक समझौते के माध्यम से चल रहे हैं। हाल ही में भारत ने जापान के साथ आपात स्थिति में एक दूसरे के सैन्य ठिकानों तथा सेवा व आपूर्ति में सहयोग का समझौता चीन की नीयत को समझते हुए ही किया है। हाल ही में अमेरिकी रक्षामंत्री माइक पॉम्पियो ने भी आसियान के सदस्य देशों का आह्वान किया है कि वे चीन की दादागिरी के खिलाफ सामूहिक तौर से डटकर खड़े हो ताकि चीन उनके अधिकारों का अतिक्रमण न कर सके तथा उनके नियंत्रण वाले द्वीपों पर कब्जा न कर सके।

यह स्पष्ट है कि चीन जैसी आसुरी शक्तियों को लेकर भारत को अपनी रणनीतिक, व्यापारिक, आर्थिक, कूटनीतिक योजनाओं को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। क्योंकि कबूतर द्वारा आंखें बंद कर लेने से बिल्ली की नीयत नहीं बदल जाती। विश्व को भी यह सोचना पड़ेगा कि वैश्विक संस्थाओं के सामूहिक पतन से पहले ही संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं में अपेक्षित परिवर्तन कर विश्व व्यवस्था को संतुलित करने का काम किया जा सके।

(लेखक पूर्व-सैनिक है। वर्तमान में शिक्षा-क्षेत्र से जुड़े है। वैश्विक, आर्थिक और समसामयिक विषयों पर निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं।)

Author: swadeshijoin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

insta insta insta insta insta insta