

नए संवत्सर, भूमि सुपोषण कार्यक्रम, व किसानों के साथ बातचीत
कल मैं भूमि सुपोषण कार्यक्रम के लिए हरियाणा के पलवल के निकट बहीन गांव में था। महिलाओं सहित कोई 35-40 किसान थे। अच्छा भूमि पूजन संपन्न हुआ।
बाद में वहां के एक किसान प्रेम सिंह जी मेरे पास आए और बोले, “सतीश जी! आपने अच्छा विषय लिया है, मैं खुद जैविक खेती करता हूं। 5-6 साल से मुझे ₹3500 प्रति क्विंटल गेहूं का मूल्य मिल जाता है और वह भी मेरे गांव से ही ले जाते हैं। मुझे तो समझ नहीं आता कि यह एमएसपी (₹1950 प्रति क्विंटल) की जरूरत है, क्यों?”
मैंने पूछा, “आप कितने बड़े खेत में करते हो,जैविक खेती?”
उसने कहा, “मेरी 5 एकड़ जमीन है, सारे पर ही करता हूं। गोबर गैस प्लांट ठीक चलता है, कभी सिलेंडर नहीं लेता। खाद भी अच्छे में बिक जाती है। पानी केवल तीन बार लगाना पड़ता है, जबकि रासायनिक खाद में 5 बार।”
फिर मैंने पूछा, “ये किसान नेता, जो एमएसपी के लिए आन्दोलन कर रहे हैं, वह क्या है?”
उन्होंने कहा, “कह नहीं सकता! लेकिन लगता ऐसा है कि जिन्होंने राजनीति करनी होती है वह ऐसे बखेड़े खड़े करते हैं, मुझे तो एमएसपी की कोई जरूरत ही नहीं लगती। यद्यपि मैं छोटा किसान हूं।”
उसकी बातें सुनकर मैं सोच में पड़ गया कि “8-9 महीने से चल रहा यह आंदोलन कितना उचित है?”
~सतीश कुमार
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