पूर्वी उतर प्रदेश के प्रवास पर काशी में लोकमत संवाद पर बोलते हुए कश्मीरीलाल जी। पालमपुर विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो:अशोक सरयाल जी, प्रांत संयोजक नरोतम जी के साथ।
परसों मैं हिमाचल के पालमपुर में कृषि विश्वविद्यालय में बोलने के लिए गया।
वाइस चांसलर प्रोफेसर अशोक सरयालजी ने कहा “सतीश जी! रोजगार पर तो आप बोलें पर कृषि से कैसे हो सकता है, इसको फोकस करना है!”
मैंने जब विद्यार्थियों से बातचीत करनी शुरू की तो उनसे पूछा “कितने लोग आप में से कृषि में ही रोजगार ढूंढने के इच्छुक हैं?”
तो जवाब कोई सकारात्मक नहीं था।
तब मैंने कहा “हमारे यहां पर पहले चलता था,उत्तम खेती, मध्यम व्यापार व निम्न चाकरी। अंग्रेजों ने इस दृष्टिकोण को उल्टा करके,कर दिया..उत्तम नौकरी, मध्यम व्यापार,निम्न खेती।”
“इसलिए आजकल एग्रीकल्चर से ग्रेजुएट होने वाले भी कृषि नहीं करना चाहते। लेकिन भारत की कृषि योग्य भूमि 15. 87 करोड़ हेक्टेयर है।”
“यदि जापान ऑटोमोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक्स में से, अमेरिका रिसर्च एंड डेवलपमेंट में से, चीन सस्ती मैन्युफैक्चरिंग में से, मिडिल ईस्ट तेल से कमा सकता है,तो भारत एग्रीकल्चर से सर्वाधिक कमा सकता है।”
“आज भी हम 63 हजार करोड़ रुपए की चावल,गेहूं व अन्य कृषि वस्तुओं का निर्यात करते ही हैं, हम अपनी ताकत पहचाने तो कृषि में रोजगार भारत सर्वाधिक खड़ा कर लेगा। फूड प्रोसेसिंग इसमें बहुत सहायक होगा।”
बाद में वहां के प्रोफेसर तथा अन्य वक्ताओं ने भी हामी भरी व कुछ सफल कहानियां भी सुनाई। कृषि क्षेत्र के विद्यार्थियों ने एक नया विचार उस दिन लिया। वहां एक विश्वास व्यक्त हुआ कि वास्तव में कृषि क्षेत्र भारत की समृद्धि व रोजगार के द्वार खोल सकता है।
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