
कल सवेरे माननीय भगवती जी के साथ मैं सैर करने को निकला!कार्यालय के सामने ही जहां शाखा लगती है,उसी पार्क में!
पर अचानक मैंने ध्यान किया कि जो मैदान एक वर्ष पूर्व मिट्टी से भरा हुआ व बहुत ही रुखा था,आज वह पूरी तरह से हरा भरा हो गया है!
यह कैसे हुआ?तभी मैंने देखा कि अपने डॉक्टर सुरेंद्र जी व वहीं के ही पड़ोसी सरदार सिंह जून जो केंद्र सरकार में कर्मचारी भी हैं, सामने मिल गए!
मुझे डॉक्टर सुरेंद्र जी बोले “सतीश जी!यह सब इन्हीं की हिम्मत है!जिन्होंने यह सारा पार्क हरा भरा कर दिया है!”
और उधर सरदार सिंह कहने लगे “अरे,नहीं भाई साहब! यह तो डॉक्टर सुरेंद्र जी व तुम्हारे शाखा वालों का ही काम है! मैं तो पहले भी प्रयत्न करता था पर सफलता तभी मिली जब सुरेंद्र जी व शाखा वालों ने इसमें रुचि ली!”
दोनों एक दूसरे को श्रेय दे रहे थे!किंतु मैं मन ही मन सोच रहा था कि पर्यावरण पर भाषण तो बहुत लोग करते हैं!पर प्रत्यक्ष अपना उदाहरण रखकर एक पार्क को इतना हरा भरा कर देना,कि वहां आज रूखी जगह एक फुट भी नहीं मिलती! पेड़ लगाने वाले अभियान की बजाय चुपचाप एक इतना बड़ा प्रत्यक्ष उदाहरण खड़ा कर देना बड़ी बात है!
और फिर…
यही है कार्यकर्त्ता का गुण स्वयं करना व श्रेय दुसरे को देना!
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