
भारत के सर्वोच्च फुटबॉल खिलाड़ी भाइचुंग भूटिया ने सिक्किम स्वदेशी के कार्यकर्ताओं के साथ पेटेंट फ्री वेक्सीन हेतु डिजिटल हस्ताक्षर किए।
यदि सटीक नीति बने और उसको ठीक से क्रियान्वयन किया जाए तो कैसा लाभ होता है, कि इस बार लॉकडाउन के बावजूद भारत के कृषि निर्यात में जबरदस्त उछाल आया है।
कारण एक तो सरकार ने 80 करोड़ लोगों को अनाज मुफ्त में बांटा। इससे सामान्य मार्केट में गेहूं चावल की डिमांड कम हो गई और सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कंपटीशन में बाजी मार ली। जहां अमेरिका इंडोनेशिया का चावल 410 डालर प्रति टन था वहीं भारत ने 360-380 में दे दिया। मिडल इस्ट व साउथ ईस्ट देशों को भेजने में किराया आदि भी बाकियों के मुकाबले भारत का कम लगता है।
यही बात गेहूं के मामले में भी हुई कि दूसरों के 310$ प्रति टन के मुकाबले हमारा दाम 285-295$ रहा। इससे हमें ग्राहक खूब मिले। इसलिए वैश्विक बाजार के हम अगुआ बन गए। फिर देश को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में हुई बम्पर फसल से भी गेहूं चावल पर्याप्त मात्रा में मिला। इससे देश को गत वर्ष के मुकाबले में $3 अरब डालर (219 अरब रुपये) ज्यादा मिल गए।
इस वर्ष भारत का कृषि निर्यात 19 अरब डालर (1387 अरब रुपए) पहुंच गया (25%वृद्घि)
किसान नेताओं को समझना चाहिए कि केवल कृषि कानूनों का विरोध करना और पूरी बात न समझना, न समझाना, इससे किसान का और देश का, किसी का फायदा नहीं। केवल आपस की दूरी बढ़ती है। अतः मिलजुल कर, अच्छी कृषि नीति, निर्यात नीति बनाने से किसान और देश को फायदा होगा, आंदोलनों से नहीं।~सतीश कुमार
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