
जय बहनजी, विश्रुत व अमेरिका निवासी परिवार के सदस्य (पुराना चित्र)
आजकल स्वदेशी शोध संस्थान के लिए अर्थ संचय अभियान चल रहा है। 3 दिन पहले इस संदर्भ में मैंने स्वदेशी चिट्ठी लिखी थी, जिसमें दिल्ली के कार्यकर्ताओं द्वारा 2 घंटे में 8 लाख रुपए एकत्र करने का प्रसंग था।
ऐसे ही 7-8 दिन पूर्व वरिष्ठ प्रचारक सरोज दा द्वारा ₹50,000 सहयोग देने का विषय था। यह सब पढ़कर पानीपत निवासी विश्रुत जी ने, जो वहां आर्य समाज का कार्य भी देखते हैं, अपनी माता जी को कहा, “दिल्ली में स्वदेशी का बड़ा भवन बन रहा है, हमें भी कुछ करना चाहिये?”
तो 83 वर्षीय अम्बा, जिन्हें हम सम्मान-स्नेह से ‘मदर इंडिया’ कहते हैं, ने कहा “जरुर! अपने बन्धु इतना अच्छा काम कर रहे हैं, तो जरुर यहाँ से भी सहयोग भेजो।”
जैसे ही मेरे वॉट्सएप्प पर संदेश आया- “हमारी तरफ से एक लाख रूपये।”
मैं अवाक रह गया। कोई फ़ोन तो क्या विश्रुत जी को किसी ने इस विषय में एक संदेश तक नहीं भेजा था, केवल फेसबुक पर संदेश पढ़कर ही, इतनी राशि भेज दी?
मुझे दत्तोपंत ठेंगडी का मार्गदर्शन याद आया “सत्य विचार की अपनी शक्ति होती है। स्वदेशी श्रेष्ठ विचार है ही।”
~सतीश कुमार
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