




भोपाल मे मंच की क्षेत्रिय बैठक व राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की गोष्ठि में।
मेरा 3 दिन का भोपाल मध्य प्रदेश का प्रवास था। अनेक बैठकें, कार्यक्रम इत्यादि थे।
लघु एवं कुटीर उद्योग मंत्रालय (M.S.M.E.) के एक आला अफसर से भेंट वार्ता भी थी।
मैंने पूछा, “यदि किसी को ब्रेड बिस्कुट बनाने की छोटी फैक्ट्री खोलनी हो, ₹25 लाख तक की, तो उसको कितने डिपार्टमेंट से अनुमति लेनी होती है?”
तो वह बोले, “पुलिस, जल, बिजली, सफाई, पर्यावरण आदि 22-23 विभागों से।” मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।
फिर मैंने पूछा, “इसमें कुल कितना समय लग जाता है?”
वह बोले, “यदि सिफारिश किसी मंत्री एमएलए की हो तो छह-सात महीने, नहीं तो 12 से 15 महीने।”
तो मैंने कहा, “ऐसे में कोई स्वरोजगार या अपना लघु उद्यम कैसे खड़ा कर पाएगा?”
वह भी इसी मत के थे और बोले कि यह तो बैंक से लोन इत्यादि लेने के अलावा की बात कर रहा हूं। इसी में बाबू भ्रष्टाचार करते हैं। और हंसते हुए बोले, “हां! बंदूक बनाने की फैक्ट्री में 18 लाइसेंस लगते हैं और 4-5 महीने में काम हो जाता है।”
मैंने बाद में सोचा कि यदि हमें स्वरोजगार, उद्यमिता व आत्मनिर्भर भारत वास्तव में सफल बनाना है तो इस लालफीताशाही और बेकार के कानूनी विभागों के चक्कर खत्म करने होंगे।
इसके लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति और जन जागरूकता की बड़ी आवश्यकता है। और भारत का युवा अब इस गली-सड़ी, पुरानी व्यवस्थाओं को बदलने को तैयार है।
~सतीश कुमार
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