Search
Close this search box.

आज मां की चौथी पुण्य तिथि पर विशेष

लगभग 50 वर्ष पहले की बात है।मैं छटी कक्षा में था। शनिवार का दिन था, सवेरे का समय।बाहर शनि देवता की आवाज आई “दान करो दान! शनि को मनाए सदा सुख पाए!..”
यह सुन रसोई में बैठी मां ने आवाज लगाई “सतीश!यह तेल की कटोरी बाहर शनि देवता को दे आ।”
मैं स्कूल जाने की तैयारी में था, देर भी हो रही थी,तो मैं वहीं से बोला “अपने आप ही दे दो, मेरे पास समय नहीं।”
यह सुन मां क्रोधित हुई,मेरे पास आई। डांटती हुई मेरा हाथ पकड़ कर तेल की कटोरी मेरे हाथ में दे दी और दूसरा हाथ पकड़ कर सीधे दरवाजे पर खड़े मांगने वाले के पास ले गई मुझे तेल देना ही पड़ा।
लेकिन मेरे मन में वर्षों तक यह बात घूमती रही की मां स्वयं गई ही थी, फिर मुझसे ही क्यों दिलवाया?”
बहुत वर्षों बाद मुरारी बापू की एक कथा सुनी तो मुझे उस प्रश्न का उत्तर मिला। वास्तव में मां मुझे दान देने का संस्कार डालना, केवल दान देने से ज्यादा जरूरी समझती थी।उसे यह था कि मेरे बेटे को दान देने की आदत लगनी ही चाहिए।
दूसरी घटना: मैं अंतिम वर्ष का छात्र था। रोज़ सायं संघशाखा में जाता ही था, व देर से संपर्क करके घर लौटता था।
एक दिन दोस्तों के साथ घर बिना बताए फिल्म देखने चला गया।इधर संयोग से उसी दिन तहसील प्रचारक शाखा आए, मैं नहीं मिला तो वह घर गए और सहज घर बता दिया की सतीश जी तो आज शाखा गए ही नहीं।”
जब रात्रि को मैं घर पहुंचा तो मां ने पूछा “आज शाखा की बजाए कहां गया था?” प्रचारक के घर आने की बात से अनजान मैंने मुंह बनाते कह दिया “शाखा गया था, और कहां गया था,क्या नई बात है?”
तो मां कड़क कर बोली “मेरे से झूठ बोलता है?” और दो थप्पड़ तेजी से मुझे लगा दिए।
मैं हैरान था। मैं अंतिम वर्ष में पढ़ रहा था, 20 वर्ष का हो गया था पर मां को थप्पड़ मारने में एक सेकंड भी सोचना नहीं पड़ा। आज हमारा सारा परिवार संस्कारित, शिक्षित व योग्य है तो उसका सबसे प्रमुख कारण मां थी।
हमारे हिंदू घरों में यह सामान्य बात है कि मां ही बच्चों की दिशा,संस्कार और भविष्य बनाती है। किंतु मैं कई बार सोचता हूं कि क्या आजकल की माताएं इसी तरह से बच्चों को संस्कार देना और बनाना जानती हैं,वैसा ध्यान,अधिकार रखती हैं क्या?, लाड प्यार तो ठीक है पर आवश्यकता पड़ने पर डांट, सख्ती भी करती हैं क्या?
बाद में भी जब मैं प्रचारक निकला तो घर के बाकी सब नाराज हुए, लेकिन मां ने कहा “कोई बात नहीं तीन बेटे हैं मेरे, एक देश के काम में लग भी गया तो क्या है?”
वैसे भी मां सेवा भारती, आर्य समाज जाती रहती थी। वाजपाई जी की तो बड़ी प्रशंसक थी।संघ कार्यालय भी कभी कभी जाती थी यह पक्का करने की बेटा ठीक जगह ही जाता है न? प्रचारक घर भोजन करने अक्सर आते ही थे। इससे घर में संघ अनुकूल वातावरण बना हुआ था।
आजकल जो भी परिवार में माताएं हैं,वे परिवार के वातावरण और बच्चों को ऐसे ही संस्कार और देशभक्ति का वातावरण देती है क्या? मैं सोच में हूं~सतीश
मां व बड़ी भाभी जी के साथ(पुरानी यादें, पुराने चित्र)

दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

YOU MIGHT ALSO ENJOY

FOLLOW US

Facebook
Twitter
LinkedIn
LinkedIn
WhatsApp
Telegram