“अरे भाई साहेब कहाँ? इतने दिनों बाद..?” दिल्ली स्टेशन पर अल्का गौरी बहनजी ने मुझे देखते ही कहा! मैंने अभिवादन के बाद कश्मीरी लाल जी से मिलवाया…उन्होंने कहा “ठीक है बहनजी को चाण्यक्यपुरी VIF(vivekanand international foundation)में हम अपनी गाड़ी में ही छोड़ देते हैं!”
ये अल्का बहनजी 22 वर्ष पूर्व पूना के परिवार से MA करने के बाद विवेकानन्द केन्द्र की आजीवन सेवाव्रती हो गईं! मैंने पूछा कैसे? अल्काजी बोलीं “वैसे मेरे नानाजी प्रचारक रहे हैं संघ के और माँ तो राष्ट्र सेविका समिति की बौद्धिक प्रमुख है ही!इससे बचपन से ही स्वामीजी के प्रति अगाध श्रद्धा मन में थी ही…जीवन में मानव व राष्ट्रसेवा मे कुछ कर गुज़रना चाहिए…इसी भाव से केन्द्र की सेवाव्रती बनी!
“कहां-२ समय लगाया?” मैंने पूछा “पहले तीन साल महाराष्ट्र में लगाने के बाद 13 वर्ष अरुणाचल नागालैंड आसाम में लगाए! विवेकानन्द 150वीं जयंति वर्ष मे 7 साल पहले पंजाब, हरियाणा हेतू आई व तब से यहीं हूँ!” सरलता,सहजता सादगी की मूर्त अल्का बहनजी कंधे पर सामान्य सा झोला लटकाए बस से, ट्रेन से कहीं भी प्रवास पर चली जाती हैं…कारयवृद्धि..एक ही लक्ष्य!!
चाण्क्यपुरी VIF पहुँचे तो पूर्व परिचित सेवाव्रती किशोरजी भी मिल गए! मैं सोच में था, संत कौन है? ये चुपचाप सबके बीच रहते हुए,दूरस्थ क्षेत्रों में भी हिन्दू समाज की सेवा करने वाले या फिर विग्यापन,5 स्टार बिल्डिंग, SUV गाड़ी जैसे साधनों से युक्त हो प्रवचन देने वाले?
जो भी हो हम इन दोनों संतों को प्रणाम कर कार्यालय आ गए..
साधना नित्य साधना साधना अखंड साधना…