परसों दुर्ग में जो छत्तीसगढ़ प्रांत में है,वहाँ के जिला संयोजक जगदीश मेहता ने अपनी कहानी कुछ यूँ सुनाई “मेरे पिताजी भिलाई स्टील plant में kaam करते थे मैंने ख़ुद बी.ए किया!पिताजी की इच्छा थी कि नौकरी नहीं करनी तो मैंने कुछ गाएँ भैंस पाल ली! 4-5 साल करने पर मैंने पाया कि इसमें मेहनत बोहोत ज़्यादा है और आमदनी बहूत ही कम,तो मेरे पिताजी के मित्र जो बड़े अफ़सर थे उन्होंने मुझे अपनी 7 acre ज़मीन में जिसमें कुछ ख़ास होता नहीं था,देते हुए कहा कि इसमें कुछ खेती करो जो कुछ देना हो दे देना और मैंने वहाँ पर कुछ घास व सब्ज़ियां लगा दी! धीरे धीरे मुझे लगा कि सब्ज़ियों से अच्छी कमाई हो रही है तो मैंने किसी के कहने पर कृषि केंद्र से टिंडा की सब्ज़ी का बीज ले आया!उसकी उस समय बहूत अच्छी पैदावार हुई और उससे भी अच्छी बात यह थी कि उसकी माँग बढ़ी भारी थी मुझे बहूत ही अच्छा पैसा मिलने लगा तब तो मैंने पूरे 7 acre में अगले वर्ष सब्ज़ियां लगाने का ही फ़ैसला किया!”
“फिर किसी ने कहा कि नागपुर अगर तुम सब्ज़ी ले जाओ तो दाम बड़े अच्छे मिलेंगे और मैंने अपनी सब्ज़ी को जो कुंदु,करेला व लौकी थी,नागपुर ले जाकर बेचना शुरू किया!बस फिर क्या था मेरे pass पैसे की कमी नहीं रही!और मैंने धीरे धीरे करके ज़मीन ख़रीदनी शुरू कर दी! वैज्ञानिक तरीक़े से उसमें अब खेती कर रहा हूँ!कुल 30 acre ज़मीन अब मेरे पास है! सफ़ाई और साइज़ निकाल कर देता हूँ,इसलिए नागपुर की मंडी में बहूत अच्छा दाम मिलता है!अब तो मेरी सब्ज़ियां export भी होने लगी है अब मैं पेस्टीसाइड भी बोहोत कम डालता हूँ जैविक पर आ रहा हूँ, क्योंकि उसका दाम और ज़्यादा मिलता है!कुल 40-42 लोग मेरे से काम भी पा रहे हैं”
उसकी कहानी सुनने के बाद मुझे पुरखों की कहावत की सत्यता का दर्शन हुआ…उतम खेती…”
कल औरंगाबाद याने संभाजी नगर में कश्मीरी लाल जी ने वहाँ के बड़े chamber of commerce में चर्चा की!उद्यमिता,स्वरोजगार और अपने सब प्रकार के उद्योग कैसे फलें फूलें!रोज़गार कैसे पनपे?इस पर बड़ी अच्छी चर्चा हुई! चैम्बर ने सम्मानित भी किया!
नीचे चित्र में सम्भाजी नगर में चैम्बर में गोष्ठी व दुर्ग में नागरिक गोष्ठी…