अभिनंदन! चंद्रबाबू नायडू जी आपने परसों एक अति साहसी बयान देकर(जो आमतौर पर राजनीतिज्ञ नहीं दे पाते) देश में एक नई बहस प्रारंभ की है की दो से अधिक बच्चे हर परिवार ने पैदा करने चाहिए।
यह बात स्वदेशी के कार्यकर्ता तो गत 3 वर्षों से बोल रहे हैं। क्योंकि भारत की प्रजनन दर 1.9 आ गई है जो की 2.1+ अवश्य रहनी चाहिए।
चन्द्रबाबू जी!आपने यह भी बताया है कि चीन, जापान, कोरिया और यूरोप के अनेक देश इस समय अपनी बूढ़ी होती जनसंख्या और गिरती प्रजनन दर से बड़े परेशान है। भारत के भी दक्षिणी प्रदेश इस नई समस्या के लपेटे में आ चुके हैं। वास्तव में जो 20 साल पुराना विचार था कि कम बच्चे पैदा करो, अब उसे बदलने का समय आ गया है, नहीं तो हम न देश को आगे बढ़ा पाएंगे न विकास कर पाएंगे।
यह ठीक है कि अभी भी लोग पुराने विचारों में फंसे हैं कि इतनी आबादी के लिए स्कूल,कॉलेज, नौकरियां कहां से लाएंगे? किंतु यह सब बेकार की बातें हैं।मनुष्य ही इन सब का निर्माण करता है।
जब एक बार मेरे से यही सवाल संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पूछा था तो मैंने उत्तर दिया ” 1960..70 के दशक में लाल बहादुर शास्त्री जी के समय पर हमारी जनसंख्या 42 करोड़ थी और हमारे पास खाने के लिए रोटी नहीं थी, सड़के नहीं थी, स्कूल नहीं थे, बड़ी परेशानी थी। शास्त्री जी ने अपील की थी कि सोमवार रात्रि उपवास रखो ताकि अनाज की कुछ बचत हो।
आज हम 142 करोड़ हैं और विश्व में सबसे अधिक गेहूं, चावल हम निर्यात करते हैं। आर्थिक विकास, सड़के,स्कूल पहले से कहीं अच्छे हैं। वास्तव में परिवार, समाज और देश वही अच्छे होते हैं जहाँ बच्चे, युवा और बजुर्ग तीनों बराबर हों।अपने भारत को बूढ़ों का देश तो नहीं बनाना न हमने?
एक नए साहसी विषय को आपने समझा और बयान देकर चर्चा का विषय बनाया, आपको साधुवाद।निर्णय तो समाज ही करेगा। आवश्यक बहस तो शुरू हुई।~सतीश
चित्र में:आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और श्रीनगर कश्मीर में हमारा स्वागत करते कश्मीरी कार्यकर्ता।