कल सुबह मै भिवानी से फ़रीदाबाद के लिए निकला तो अपने टैक्सी चालक से पूछा “क्या नाम है भाई, कितना पढ़े हो, किसकी गाड़ी चलाते हो कितना कमाते हो?”
उसने मेरी तरफ़ थोड़ा आश्चर्य से देखा व बोला “मेरा नाम ललित है,यहीं भिवानी का हूँ, भाई की गाड़ी चला रहा हूँ” मैरे और पूछने पर बोला “ साहब, बैकं में या किसी दफ़्तर में कोई चपड़ासी की नौकरी ढूँढ रहा हूँ ,आप कोई मदद…?”
मैने पूछा “मालिक बनना अच्छा या नौकर बनना?” वह तुरंत बोला मालिक बनना! पर हमारे नसीब में कहाँ? मै धोबी का लड़का,12वीं पास, ग़रीब आदमी,कोई अफ़सर तो बनूँगा नहीं”
मैने कहा “पर यह गाड़ी भी तो तेरे भाई की है,वो गाड़ी का मालिक है न?”
“पर उसने फाइनांस कराई है!”
“तो तेरे को फाईनांस कराकर गाड़ी ख़रीदने,मालिक बनने से कोई रोकता है क्या?
“नहीं,नहीं! मैने इस तरफ़ सोचा ही नहीं …हाँ,हो तो सकता है..थोड़ा रूककर बोला..” और क्या करूँ सरजी? मेरे पास तो लाइसैसं भी है,थोड़ा पैसे कम हैं.. डरता भी हूँ..पर कर लूंगा…”उसके चेहरे की चमक व गले का भरा स्वर देख, मैं समझ गया तीर ठीक निशाने पर लग गया है?
फिर क्या था,वह पूछता रहा..मैं क्या क्या करूँ क्या न करूँ कमाने के लिए!
मै बताता रहा “सवेरे जब काम पर निकलो नहा धोकर,प्रभुस्मरण करके, गाड़ी चलाओ, सवारी का सम्मान करो, मेहनत भरपूर करना,हमेशा बड़ी कमाई करने की सोचना,मालिक बनना..नौकर नहीं ..”
फ़रीदाबाद से जब वह वापसी करने लगा तो मेरे पैर छूकर बोला “मै आपकी बातें याद रखूँगा..सरजी”
आज सवेरे ही उसका फ़ोन आया, लगभग चीख़ते हुए बोला “सर, मैं ललित बोल रहा हूँ ,आज मैने साफ़ क़मीज़ पैन्ट पहनी है, शेव भी की है..बस आप ध्यान रखना मेरा,मै आपको मालिक बनकर दिखाऊगां…..”
मैने कहा…तू मुझे आगे से सर नहीं,भैया कहना..”इससे आगे मैं बोल नहीं पाया..मेरा गला भर आया! फ़ोन बंदकर मैं सोचने लगा आज एक कार मालिक मेरा दोस्त बन गया है….
(नीचे:परसों चौ:बंसीलाल यूनिवर्सिटी में VC प्रो: राजकुमार मित्तलजी ने “Employment Generation, strategies..opportunities n challenges” पर बहुत उच्च स्तरीय सेमिनार करवाया…जय हो!)