3 दिन पहले मैं बाल कटवाने के लिए दिल्ली स्वदेशी कार्यालय से निकला। स्वभाविक रूप से जब नाई मेरे बाल काट रहा था, तो अपनी आदत अनुसार मैंने पूछा, “क्या नाम है भाई? कहां के रहने वाले हो? कितना कमा लेते हो?”
थोड़े संकोच के बाद उसने कहा, “मेरा नाम शाहिद है, उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर का रहने वाला हूं और कमाई तो ठीक ही है।”
मैंने पूछा कि यह काम तुम्हारे पिताजी भी करते थे क्या?
वह बोला, “हां! जब मैं छोटा था, तभी पिताजी गांव से यहां आ गए थे। थोड़े दिन उन्होंने नाई का काम किया, किंतु फिर शीशे लगाने का काम शुरू किया। वह काम तो ठीक चला किंतु डेढ़ साल बाद ही उसमें बड़ा घाटा हो गया। तो दोबारा पिताजी ने यही नाई का अपना पुश्तैनी काम शुरू किया। मैं भी छोटी उम्र में यहां आ गया था। मैं तो केवल आठवीं पास हूं, लेकिन पिताजी से ही मैंने काम सीखा। अब हम पिता पुत्र दोनों मिलकर कमाई कर लेते हैं। यहां दिल्ली में अपना एक छोटा सा मकान भी बना लिया है।”
मैंने जोर देकर पूछा, कितना कमाते हो?
तो उसने कहा की कट कटा के महीने का 23-24000 बना ही लेते हैं।
मैंने कहा, “किसी को सहायता के लिए दुकान पर रखा भी हुआ है क्या?”
उसने कहा, “हां एक लड़का रखा हुआ है, और दुकान का थोड़ा किराया भी है।”
वह आठवीं पास लड़का उत्तर प्रदेश से आया हुआ, अपने पिताजी से नाई का काम सीखा। एक को रोजगार भी दे रहा है। पिता पुत्र मिलकर 23-24000 रूपए महीने के कमा भी रहे हैं।
ना उनके लिए सरकार ने कुछ किया, ना उनके पास पूंजी थी, ना पढ़ाई थी, और ना ही कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि। किंतु अपना भारत ऐसे ही कमाता है। अगर आदमी हिम्मत करे तो रोजगार पाने का तरीका हमारी परंपरा में ही है।
उसी नाई शाहिद के साथ सेल्फी।
और माननीय कश्मीरी लाल जी हरियाणा प्रवास के दौरान पानीपत में कार्यकर्ताओं की बैठक लेते हुए।
(३ वर्ष पूर्व लिखी चिठ्ठी)