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जीना इसी का नाम है…

आज हम तमिलनाडु के तेनकाशी में जोहो कॉरपोरेशन के सीईओ श्रीधर वेमबू जी से मिले। उनका केंद्र तमिलनाडू के तेनकाशी जिला केंद्र से भी 16 कि:मी: दूर है और वे वही गांव में ही रहते हैं।बहुत ही सामान्य, रहन सहन और जमीन पर ही बैठकर हमसे बातें करने लगे।हम हैरान थे हमारे सामने वही व्यक्ति फर्श पर बैठा था जो प्रति वर्ष 700 करोड़ रुपए का इनकम टैक्स भरता है।
10,000से अधिक लोगों को सीधे रोजगार दे रखा है।35 देशों में जिसके कार्यालय हैं।
वे बोले “जिला आधारित विकास मॉडल ही देश को रोजगार युक्त और समृद्धि युक्त करेगा।”
वहां गांव में 800 से अधिक कर्मचारीयों का अंतरराष्ट्रीय स्तर का ऑफिस हमने देखा। गांव में इस उच्च स्तर की बिल्डिंग की कल्पना ही कठिन है।
उन्होंने बताया “मैंने करोना के समय पर भी किसी कर्मचारी को निकाला नहीं। हम अभी मैन्युफैक्चरिंग भी शुरू कर चुके हैं।”
उन्होंने आगे कहा “नजदीक के व्यक्ति को नौकरी प्राथमिकता से देता हूं।”
हमने भी वहां ऐसे युवाओं से बातचीत की। इतनी बड़ी कमाई,किंतु धन का अहम छू तक भी न जाए, इस तरह का जीना ही जीना है।नहीं तो थोड़ा भी पद और पैसा आते ही लोगों में अहंकार जाग जाता है। ध्यान रहे श्रीधर वेंबू जी स्वदेशी शोध संस्थान के चेयरमैन और स्वाबलंबी भारत अभियान के संरक्षक हैं।
हम दोपहर के भोजन और पूरी तरह केंद्र देखकर शाम को मदुरई आ गए।~सतीश
युवा उद्यमियों की नई काशी, तेनकाशी में प्रवास के दौरान सुंदरम जी, कश्मीरी लाल जी के साथ।

दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

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