एक बालक जिसकी उम्र लगभग 13 साल बिल्कुल बदहवास अवस्था में तेजी से भाग रहा था , और इसी तरह भागते भागते वो मेडिकल स्टोर में घुसा , हाथ की पर्ची को काउंटर पर देकर लगभग चिल्लाते हुए बोला , ” जल्दी दवा दो मेरे पापा की तबियत बहुत खराब है “।
मेडिकल स्टोर वाले ने बच्चे की हालत देखकर जल्दी जल्दी दवा निकाली और बिल बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया और बोला 1345 हुए , बच्चे के होश गुम हो गए और लगभग रोते हुए बोला अंकल जी मेरे पास तो बस 500 हैं , मेडिकल स्टोर वाले ने जल्दी से दवाई वापिस छीन ली और बड़बड़ाया ” आ जाते हैं भिखारी कहीं के “
जो काल्पनिक घटना मैंने ऊपर लिखी है ऐसी घटनाएं गरीबी की वजह से बहुत से लोगों के जीवन में रोज ही घटित होती होंगी , लेकिन जीवन में ऐसी ही कुछ दिक्कतों और तकलीफों का सामना करके एक बुजुर्ग ने ऐसी मिसाल पेश कर दी कि आज दुनिया उनके कार्य को देखकर नमन किये बिना नही रह पाती ।
किसी ने सच ही कहा है कि समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो राह खुद ही निकल आती है। आज इस लेख में हम जिनकी बात कर रहे हैं वे हैं दिल्ली के मेडिकल बाबा और उनके किए गए कार्य हमें यही संदेश देते हैं। इन्होंने गरीब और लाचार लोगों के लिए जीवन बचाने लिए जो कार्य किए हैं वह देश-दुनिया के लिए मिसाल बन चुके हैं । आइये उनके बारे में और अधिक जानते हैं ।
पहले बाबा खुद जरूरतमंद और लाचार थे, इसके बाजवूद उन्होंने गरीब और लाचार लोगों की मदद की बीड़ा उठाया। वर्षों से वह लोगों की निशुल्क मदद कर रहे हैं। अब मेडिकल बाबा की इच्छा दून अस्तपाल में मेडिकल सेंटर खोलने की है, जहां से गरीबों को निशुल्क दवा मिल सके।
असल में ओमकार नाथ जी यानी मेडिकल बाबा लोगों से दवा मांगकर दूसरे गरीब जरूरतमंदों को उलब्ध कराते हैं। 12 साल पहले जब बाबा ने गरीबों के जीवन बचाने का बीड़ा उठाया था तो वह झोला लेकर घर से निकले थे। लोगों के घर-घर जाकर बची हुई दवा फेंकने के बजाय दान में मांग लेते थे। अस्पतालों में जाकर जरूरतमंद लोगों को वह दवा देते थे। लोगों ने जब बाबा का सेवा भाव देखा तो लोग उन्हें बाजार खुद दवा खरीदकर देने लगे। आज बाबा के पास दवा का बड़ा गोदाम है और देश ही नहीं विदेश से भी लोग उन्हें दवा भेजते हैं।
बाबा बताते हैं ” तेग बहादुर हास्पिटल के पास मैट्रो का लेंटर गिर गया था कई गरीब-बेसहारा लोग घायल हुए। मैं हास्पिटल में था डॉक्टर उनसे कह रहे थे कि दवा की व्यवस्था खुद करो। गरीब-बेसहारा जिसका कोई है नहीं, वह कहां से दवा की व्यवस्था करेगा। मैंने उसी पल ठान ली कि गरीबों को निशुल्क दवा उपलब्ध करूँगा , मेरी खुद की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन मैंने फैसला किया कि लोगों से मांगकर जरूरतमंदों को दूंगा ।
आगे बोलते हुए बाबा कहते हैं ” घर वाले मजाक बनाने लगे कि दवा की भीख मांगोगे, लोग क्या कहेंगे लेकिन प्रभु की दया से मैंने काम शुरू किया आज घर वाले भी खुश हैं कि लाखों गरीबों को मुफ्त दवा मिलती है।
वह गरीबों को मुफ्त में अस्तपाल पहुंचाते हैं। आज उनके पास कई एंबुलेंस हैं। वह खुद घर में अस्पताल बनवा रहे हैं। जब उन्होंने गरीबों की मदद का बीड़ा उठाया तो वह बाइक के पीछे मरीज रखकर उसे खुद से बांध लेते थे और अस्पताल पहुंचाते थे।
~राजेश जिंदल- – ‘स्वदेशी-चिट्ठी’