मैं आज अम्बाला से देहरादून की ट्रेन में चढ़ा! सामने वाली सीट पर करनाल के एक बुजुर्ग बैठे थे! मैने पूछ लिया “हरिद्वार पुण्य कमाने जा रहे हो?” तो धर्मपाल जी बोले “पुण्य तो सारा मैने करनाल में ही कमा लिया है! यहां तो थोडा विश्राम व गंगास्नान हेतू ही जा रहा हूं!” मैने पूछा “वह कैसे?” इस पर धरमपाल जी बोले “1993 की बात है!मेरे परिवार के दूर के रिश्ते में किसी का देहान्त हुआ,ऐक्सीडैंट में और लाश पोस्टमार्टम के लिए 6 घंटे से भी ज्यादा यूं ही पड़ी रही! क्योंकि वहां कोई शवगृह या पोस्टमार्टम हाउस तब था ही नही! तो मैने निश्चय कर लिया, उसे ही बनाने का! मै CMO के पास गया पर जगह नही मिली! मै DC के पास चला गया व आश्वासन दिया कि एक पैसा भी सरकारी नहीं लूंगा,बस जगह दे दो…तब जगह मिली! तो मैने लोगों से कुछ सहयोग लेकर केवल तीन महीने मे ही 12+24 का शवगृह बनवा दिया!एक शिवशक्ति सेवा मंडल गठित हो गया!”
“…और अब गरीबों की दवाई, अम्बुलैंस, रक्त-व्यवस्था आदि तो है ही भोजन का भी पूरा प्रबंध रहता है!” मेरे पूछने पर उन्होने बताया ”पैसे की कोई कमी नहीं रहती…आप निस्वार्थ काम करते हो तो समाज देने में पीछे नहीं है..,मेरे ही मित्र चावला जी ने तो अपने पैसे से ही निर्मल धाम बना कर निर्मल कुटिया को दे दिया..” मैने उन्हें प्रणाम करते हुए सोचा,सच्चा वानप्रस्थ तो यही है…सेवा से बडा पुण्य क्या है,यही धर्म है…इतने में ही स्टेशन आ गया…