कल मैं हरियाणा के नूह जिले में तावडू स्थान पर लोकमत परिष्कार की एक बैठक लेने गया।वहां पर 55..60 कार्यकर्ता थे। दो महिला कार्यकर्ता भी थीं। बातचीत हुई तो मुझे आश्चर्य हुआ कि वे दोनों बहिनें लखनऊ से आई थी।
मैंने पूछा “आप कितने दिन के लिए आई हैं, और क्यों आई है?”
उन्होंने कहा “अपने संगठन की सूचना थी और यहां पर चुनाव का समय है।अपनी विचारधारा के व्यक्ति तो जीतने चाहिएं इसलिए आई हैं।”
मैंने पूछा “परिवार में?” तो दोनों बहनों ने बताया ” एक के दो और दूसरी के तीन बच्चे हैं।दोनों के पति भी संघ परिवार से हैं। इसलिए उन्होंने भेजने में कोई दिक्कत नहीं की।”
फिर मैंने पूछा “यहां कैसा चल रहा है?”
तो उन्होंने बताया “यहां पर महिला मोर्चा बहुत सक्रिय नहीं है,इसलिए हमें खुद होकर काम करना पड़ रहा है।पर हम भी डटी है किसी न किसी को साथ लेकर लगी हैं।”
उत्तराखंड से एक पुरुष कार्यकर्ता भी विस्तारक के रूप में आए हुए हैं। खैर!वे तो अपने प्रचारक रहे हुए हैं। फिर मैंने पूछा “कितने ऐसी बहने वहां से यहां आई हैं?
तो उन्होंने बताया “हम पांच तो लखनऊ से ही आई हैं अन्य भी कई प्रांतों से आई हैं।पुरुष तो काफी बड़ी संख्या में विस्तारक के नाते से इस चुनाव के समय पर आए ही हैं।”
बाद में हम संघचालक जी के यहां चर्चा कर रहे थे की संघ संगठन में तो यह परंपरा है, किंतु राजनीतिक दलों के बारे में माना जाता है कि वहां पर कार्यकर्ता प्रमुख रूप से सत्ता और पद के स्वार्थ से ही आते हैं।किंतु आज देखा कि जहां न परिचय है न वहां कोई उनको पद मिलना है केवल अपना दल, अपनी पार्टी, अपनी विचारधारा के लोग विजयि हो जाएं इस एक मिशन मोड पर ये बच्चों को उनके पिता, दादी के पास छोड़ महीने से भी अधिक समय हेतु आई हैं। मैंने उनका अभिनंदन किया और उनको ऐसे ही जीवन में ध्येय पथ पर चलने का आग्रह किया।
चित्र में पटौदी और पलवल बैठक के लोकमत परिष्कार के कुछ चित्र
One Response
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