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सुख देने में,बांटने में है संग्रह में नहीं!

कल शिमला में चल रहे, पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता अभ्यास वर्ग के बाद कश्मीरी लाल जी और मैं चर्चा कर रहे थे।
पिछली रात नारायण मूर्ति जो इंफोसिस के सह संस्थापक हैं कि सुनाई एक घटना पर चर्चा हुई। नारायण मूर्ति माउंट एवरेस्ट स्कूल में भाषण करने के लिए गए थे, उन्होंने अपने जीवन का एक प्रसंग वहां सुनाया।
मूर्ति बोले “1961 में जब मैंने सीनियर सेकेंडरी परीक्षा पास की तो मैं पूरी राष्ट्रीय परीक्षा में चौथे स्थान पर रहा। उस समय हमारा परिवार बहुत सामान्य था।” मेरी मेहनत का फल मिला।मुझे बहुत बड़ा, ₹900 का वजीफा मिला।उस समय के हिसाब यह राशि काफ़ी बड़ी थी।”
भारतीय घरों की परंपरा अनुसार कॉलेज से पैसे मिलने के बाद मैंने पूरी राशि घर में मां की हथेली पर रख दी और बाद में मां से कहा कि मुझे ₹50 दे दो,तो मैं अपनी एक नई पेंट और कमीज लेना चाहता हूं।जो कि मेरा बहुत दिनों से सपना था।”
मां ने उनको ₹50 दे दिए। वह बड़े खुश हुए और अगले दिन जाकर अपने मनपसंद के रंग और डिजाइन की पेंट कमीज ले आए। एक दिन तो बहुत अच्छे ढंग से निकला।किंतु मां को लगा कि उनके बड़े भाई को इस पेंट कमीज की ज्यादा जरूरत थी । उन्होंने नारायण मूर्ति को कहा कि “तुम अपनी यह पेंट कमीज बड़े भाई को दे दोगे क्या?”
नारायण मूर्ति पर मायूसी छा गई क्योंकि वह बहुत महीनों से इस नई पेंट कमीज की इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मां को कोई जवाब नहीं दिया।सोच में पड़ गए कि अब क्या करूं?
संयोग से उसी दिन शाम को वहां घर से निकट एक महाभारत पर ड्रामा होने वाला था। वह देखने के लिए नारायण भी गए। उस दिन कर्ण का प्रसंग था। कर्ण दान देने के लिए महाभारत में प्रसिद्ध है।और वह दृश्य ऐसा था कि जिस दिन कर्ण के पास कुछ भी नहीं बचा, तो भी उसने अपना दांत निकाल कर दान में दे दिया।
रात्रि सोते समय तक नारायण मूर्ति के दिल दिमाग पर इस दृश्य का बहुत असर हुआ।उन्होंने सोचा कि “अगर देने में ही आनंद और सार्थकता है तो मैं क्यों संकोच करूं?” और अगले दिन सवेरे जाकर उन्होंने अपनी नई पेंट कमीज मां के हाथ पर रखते हुए कहा कि “इसे भैया को दे दो!” हाल में बैठे हुए सभी विद्यार्थीयों की आंखें भी नम हो गई।
यह वास्तव में दूसरों को दे देने का भाव भारतीय संस्कार है और सुख प्रतिष्ठा इसी में ही है, चीज इकट्ठी करके अपने ही पास रखने में नहीं।
यह प्रेरणादाई प्रसंग मेरे दिमाग में घूम रहा था। तो सोचा स्वदेशी चिट्ठी के पाठकों से भी इसकी चर्चा करूं।~सतीश
चंडीगढ़,पंजाब विश्वविद्यालय में परसों हुए कार्यक्रम के चित्र

दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

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