15 अगस्त के दिन मैं दिल्ली के स्वदेशी कार्यालय से निकला। धौला कुआं से मेट्रो पकड़नी थी क्योंकि मुझे द्वारका में डॉ ऋचा से राखी बंधवाने के लिए जाना था। मैंने ऑटो पकड़ा और जब धौला कुआं की तरफ चला तो मैंने ऑटो वाले से पूछा “परिवार में कौन-कौन है,गुजारा ठीक चलता है क्या?
तो वह बोला “तीन बच्चे हैं!दो बेटियां और एक बेटा। बड़ी बेटी अब पढ़ लिख गई है, एक स्कूल में क्लर्क लगी है।इस 8 नवंबर को उसकी शादी तय की है। लड़का भी एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक है।”
मैंने पूछा “पैसे की व्यवस्था हो गई, क्या?”
तो उसने कहा “परमात्मा के बच्चे हैं, वह व्यवस्था भी करेगा ही।”
तब तक धौला कुआं का मेट्रो आ गया। किंतु तभी मेरे मन में विचार उठा कि उस बच्ची के लिए मुझे भी कुछ कन्यादान देना चाहिए। तो मैंने उस ऑटो वाले को कहा “अगर तुम मुझे द्वारका 21 सेक्टर ले जाओ तो कितनी देर लगेगी?”
उसको भी सवारी की इच्छा थी तो उसने बोल दिया “15-20 मिनट।” यद्यपि मैं जानता था कि आधे घंटे से कम का रास्ता नहीं है। फिर भी मैंने मेट्रो को छोड़ उस ऑटो वाले को कहा “चलो!”
द्वारका पहुंचने पर मैंने बिल पूछा तो उसने बताया “₹220!”
मैंने ₹250 उसको देते हुए कहा “इसे बेटी का कन्यादान ही समझना।”
वह आश्चर्य से मेरी तरफ देखता रह गया।
किंतु मैंने जल्दी से उसके साथ एक सेल्फी ली और सेक्टर 21 की सोसाइटी में निकल गया।
मन में एक संतोष हुआ यदि मैं मेट्रो से आता तो केवल ₹50 लगते।पर मैं तो किसी भी कार्यकर्ता से ₹200 ले लूंगा। और उसकी तरफ से ऑटो वाले की बेटी के लिए एक सूक्ष्म और परोक्ष कन्यादान तो मेरे हाथों हुआ।
ऑटो वाले के साथ सेल्फी…
~#सतीश कुमार