कल मै मुम्बई के दादर स्टेशन पर जा ही रहा था की मैने मुम्बई के प्रसिद्ध ‘डिब्बावाला’ देखे। समय था तो मैने वहीँ टेक्सी छोड़ उनसे बातचीत करने की सोची।
मैने सीधे सवाल किया “इसमें से इतना कमा लेते हो क्या,की घर ठीक से चल जाये?” ये क्या काम है?कोई और काम नहीं मिलता क्या?”
डिब्बावाले सुहास ने मेरे पूछने पर जैसे मेरी तरफ देखा, उससे मै समझ गया की मै ट्रेन की जल्दी व् उत्सुकतावष गलत प्रश्न पूछ बैठा हुँ!!
लेकिन वह 37-38साल का जवान संयत रहा और बताने लगा “ऐसे तो 16-17हजार कमा लेते हैं,पर लोगों को घर का गर्म खाना खिलाना भी तो अच्छा काम है, हम शिवाजी के मराठे हैं, पैसे से बढ़कर सेवा को महत्व देते हैं वह भी शान से…”
विजयी भाव उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था…
आपको जानकारी रहे 1896 में एक पारसी फर्म के मालिक ने अपने घर से ताजा खाना मंगाने के लिए एक व्यक्ति रखा। उसका अच्छा अनुभव देख बाकियों ने भी उसे तय कर लिया..धीरे धीरे इनकी संख्या बढ़ती गयी। आज कोई 5000 डिब्बा वाले हैं, मुम्बई में।
मेरे पूछने पर सुहास ने बताया “एक डिब्बा वाला 25-30लोगों को उन्ही के घर से भोजन लाकर दफ्तर में पहुचाते हैं,एक को 500 से लेकर 800रू महीने (दूरी पर निर्भर) पर मिलता है…
जो मेस से खाना मंगाना चाह्ते हैं तो वहां से भी,लाकर देते हैं।
सदा समय पर, कभी भी चूक नहीं…उनकी विशेषता है!
ये देशभक्ति के सन्देश वाहक भी हैं, कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान में फाँसी न हो, इसके लिये इन्होंने अभियान चलाया था..जय हो..
भारत ही नहीं दुनिया के बड़े management Institute इस डिब्बावाला नेटवर्क को समझने के लिये आते हैं
स्टेशन पर पहुंचा तो गाड़ी थोड़ा लेट थी। सामने देखा बूट पालिश करने वाले को। तो उससे दोस्ती करने की सोची
अपनी चप्पल पालिश कराने के बहाने मैने उससे चर्चा शुरू कर दी
“कहाँ के हो भाई? कितना कमा लेते हो? ठीक चल रहा है?”
वह बोला “सुनील नाम है मेरा,बिहार के सहरसा का रहने वाला हूँ,जात से रविदासी हूँ, रोज़ के 400-450 कमा लेता हूँ, 1000 रू इस जगह का किराया, 2000 रू मकान(सामूहिक) बाकि खर्च निकाल 4000 रू तक गाँव भेज देता हूँ!”
“यहाँ खुश हो?” मेरा सवाल था
“हाँ, कोई दिक्कत नहीं, भगवान है न?वह सबका ध्यान रखता है!”
डिब्बावाला सुहास व पॉलिश वाला सुनील की बातें सुन उनकी ख़ुशी व् सकून देख मै सोच में था ” तथाकथित अमीर लोग भी इतने प्रसन्न,खुश रह पाते हैं क्या?
सतीश~’स्वदेशी-चिठ्ठी’