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स्वावलंबी भारत अभियान की संकल्पना पर सरकार्यवाह माननीय दत्तात्रेय होसबाले द्वारा दिये गये संबोधन के मुख्य अंश 

स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित स्वावलंबी भारत अभियान की दो दिवसीय अखिल भारतीय योजना बैठक, दिल्ली स्थिति हरियाणा भवन में संपन्न हुई। बैठक को ऑनलाईन संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि महात्मा गाँधी जी और भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से प्रेरणा लेकर देश के लिए काम करने के अपने संकल्प को पुनः चेतनायुक्त बनाएँ ओर भारत को एक श्रेष्ठ, समृद्धिशाली, शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित करने की प्रेरणा से हम सब आगे बढें।

दिनांक 30 सितंबर 2022 से शुरू होकर 1 अक्टूबर 2022 तक चली योजना बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधिक करते हुए श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि पूर्व की सरकारों की गलत नीति के कारण गांव से शहरों की ओर पलायन होने लगा है। शहरों की स्थिति भी खराब होती जा रही है। वर्तमान सरकार ने इस पर संज्ञान लिया है तथा सरकार ने स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर भारत की बात कही है। सरकार को चाहिए कि लघु उद्योग, हस्तशिल्प, कृषि खाद्यान्न, आयुर्वेद की दवा आदि क्षेत्रों में गांवों में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए नवाचार का प्रयोग करें, नये-नये उपक्रम करें। स्थानीय कौशल को पुनर्जीवित करते हुए स्थानीय स्तर पर योजना बनें। मेक इन इंडिया को सही मायनों में धरातल पर उतारा जाए, किसानों को उपज के उचित दाम मिलें, उपज के लिए प्रसंस्करण ईकाईयां लगाई जाए। किसानों को अपनी उपज मंडी तक पहुंचाने के लिए भी ठोस कदम उठाने चाहिए।

उन्होंने कहा कि बीते 75 वर्षों में कई प्रकार की चुनौतियों व संकट का सामना करने के पश्चात भी देश ने कई आयामों में  प्रगति की है। सुरक्षा क्षेत्रों में हो, विज्ञान और तंत्र ज्ञान के विभिन्न आयामों में हो, चिकित्सा, दवा के क्षेत्र में हो, भारत ने विशेष तरक्की की है। भारत ने जिस प्रकार अपने पैरों पर खड़े होने का एक सार्थक प्रयास किया है। इसकी आज विश्व में सराहना भी हो रही हैं। आज भारत का विश्व के अर्थ संपन्नता की दृष्टि से स्थान सबसे ऊपर के छह देशों में एक है। शीघ्र ही हम और तरक्की करने के लिए अग्रसर हें। उस दिशा में देश आगे बढ़ रहा है, यह विश्वास हम सब रखते हैं।

आर्थिक असमानता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पर केपिटा इनकम की दृष्टि से 2020 में 1 लाख 35 हजार रुपये की तुलना में 2022 में 1 लाख 50 हजार पर केपिटा इनकम के आंकड़े हमारे सामने हैं। बेरोजगारी की संख्या पिछले जून में लगभग 4 करोड़ थी, 2.2 करोड़ रूरल एरिया में तथा 1.8 करोड़ अर्बन एरिया में। लेबर फोर्स सर्वे के अभी-अभी के जो आंकड़े हैं उसके हिसाब से 7.6 प्रतिशत बेरोजगार है। देश में गरीबी, बेरोजगारी इसके साथ-साथ और एक विषय के बारे में भी हमें विचार करना पड़ेगा, वो है – आर्थिक असमानता (इनइक्वैलिटी)। भारत में टॉप 1 प्रतिशत आबादी की इनकम देश के इकोनॉमी की 20 प्रतिशत है तथा 50 प्रतिशत लोगों की इनकम देश की 13 प्रतिशत ही है। तो इस असमानता के संदर्भ में भी हमें सोचना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच और आर्थिक क्षेत्र में कार्य करने वाले समाज के बहुत सारे संगठन, संस्थाएँ, स्वावलंबी भारत निर्माण कराने के अभियान की तरफ आगे बढ़ी हैं। सरकार ने एक तरफ आत्मनिर्भरता की बात की, जिस की घोषणा प्रधानमंत्री जी ने की है। राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता भारत का मंत्र बनना ही चाहिए। भारत को स्वदेशी के आधार पर स्वावलंबी बनाना केवल कोई सपना नहीं है, यह भारत के अंदर की ताकत है, क्षमता है।

सरकार्यवाह ने कहा कि सरकार भी कई प्रकार की योजनाएं सामने लेकर आई, जैसे- पशुधन के संदर्भ में, मत्स्य पालन के संदर्भ में, कृषि को आगे बढ़ाने के लिए एफपीओ जैसी योजनाएं आदि। इन सारे कारणों से देश के अंदर एक वातावरण बनने में सहायता मिली। यही कारण है पिछले 4-6 महीनों में स्वावलंबी भारत अभियान की योजनाएं जिले के नीचे खंड स्तर तक, ग्राम स्तर तक कैसे फेलती जा रही हैं, यह प्राप्त सूचनाओं से स्पस्ट है। यह एक सार्वदैशिक, सार्वभौमिक व्यापक अभियान बनता जा रहा है। इसलिए प्रत्येक ब्लाक में कार्य करना पड़ेगा, प्रत्येक गांव तक इस योजना को फैलाने के लिए, जहाँ अभी भी पहुंचे नहीं है, वहाँ पहुंचाने के लिए योजना बनानी पड़ेगी। सरकार के प्रयास के साथ-साथ समाज के प्रयास होने चाहिए। इस अभियान में जो लोग जुड़ सकते हैं, किसी न किसी प्रकार से अपना योगदान दे सकते हैं ऐसे संस्थान, ऐसे व्यक्ति, इन सभी लोगों को जोड़कर समन्वित प्रयास होने चाहिए।

श्री होसबाले जी ने कहा कि योजनाएं केवल अखिल भारतीय स्तर पर बनाने से काम नहीं बनेगा, इसलिए स्थानीय योजना यानि विकेंद्रीकरण इसकी आवश्यकता है। इस विकेंद्रित योजना से, परस्पर सहकार और समन्वय से, इन बातों को हम आगे बढ़ा सकते हैं, वो कृषि के क्षेत्र में हो सकता है, स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में हो सकता है, कृषि के संदर्भ में, बीज के, फल के, सब्जी के, फूलों के हैं, कोल्ड स्टोरेज के संदर्भ में, मार्केटिंग के संदर्भों में हैं, इन सारे संदर्भों में हमें विचार करना पड़ेगा। कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग की कई प्रकार के चीजें, कुछ समय में जो नष्ट हो गई हैं, उसको हम पुनर्जीवित कर सकते हैं, ऐसे ही दवा के क्षेत्र में स्थानीय कई प्रकार के आयुर्वेद की चीजें बन सकती है।

उन्होंने बताया कि नए स्टार्टअप को बहुत बड़ा प्रोत्साहन मिलने के कारण बड़ी संख्या में स्टार्टअप आज दिखाई दे रहे हैं। उद्यमिता में जिनकी रुचि है ऐसे लोगों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए और इसके साथ साथ प्रशिक्षकों की भी बहुत बड़ी आवश्यकता होगी क्योंकि हमें जिले के नीचे के स्थानों पर, छोटे नगर में, खंड केंद्र में, ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए एक महा अभियान चलाना है।

उन्होंने कहा कि उद्यमिता की दृष्टि से देखें तो कौशल केंद्र की स्थापना और इंटरप्रीनयोरशिप के लिए एक वातावरण बनाना पड़ता है। कॉलेज से निकलने वाले लोगं सरकारी नौकरी की तरफ या प्राइवेट नौकरी की तरफ जो सेलेरी देने वाली नौकरी है, उसकी तरफ देखने से देश के अंदर उतनी नौकरी तो मिलेगी नहीं, इसलिए नौकरी पाने वाले के स्थान पर नौकरी देने वाले बनें, इस बात के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा। ये कैसे संभव है? इंटरप्रीनयोरशिप, उद्यमिता के माध्यम से।

उन्होंने कहा कि युवकों को लगता है कि केवल व्हाइट कॉलर जॉब में, आज समाज में प्रतिष्ठा है, लेकिन मनुष्य जीवन के लिए सब प्रकार के कार्य की एक प्रतिष्ठा होनी चाहिए। कोई काम छोटा या बड़ा, ऐसा नहीं हो सकता।

शहर और गांव के बारे में, छोटे काम और बड़े काम की दृष्टि के बारे में, शरीर श्रम और श्रम से बचने के प्रयत्न के बारे में, इन सारे विषयों में मानसिकता के परिवर्तन की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि भारत सोने की चिड़िया रही है, भारत एक सम्पन्न राष्ट्र रहा अनेक शतकों तक, इसीलिए तो इस देश पर आक्रमण हुए। 2000 वर्षों के विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के आर्थिक विषय क्षेत्रों के अध्ययन करने वाले एंग्स मेडिसिन के अनुसार उस समय भारत का वर्ल्ड ट्रेड में 25 प्रतिशत हिस्सा था। विलियम डेम रिमप्ल ने बताया है कि 1600 ईस्वी तक यानी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के पहले तक भारत की जीडीपी वर्ल्ड की वन फॉरथ ऑफ जीडीपी थी। लेकिन 75 वर्षों मे देश स्वतंत्र होने के बाद तो हमें यह सब ठीक करना चाहिए था। विश्व के ऐसे कई राष्ट्र भी है जिन्होंने अपने आपको सुधार लिया, द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जापान की स्थिति क्या थी? इजराइल में तो 1948 में ही अपनी मातृभूमि पर यहूदी लोगों ने आकर उस राष्ट्र को खड़ा करने के लिए प्रयत्न प्रारंभ किये और वो आज कहाँ पहुंच गए? परिश्रम के, राष्ट्रभक्ति के, समाज को लेकर चलने के, मानसिकता के, देश के प्रति श्रद्धा और आदर रखने के स्वभाव में, हम इन देशों से प्रेरणा ले सकते हैं। इन चीजों को यदि हम देखें तो अपने देश में भी आर्थिक कायाकल्प करना बहुत असंभव नहीं है। अब इस दिशा में देश आगे बढ़ भी रहा है।

स्वावलंबी भारत अभियान में चार मार्ग बताए गए हैं – 1. विकेंद्रीकरण, 2. स्थानीय स्वदेशी, 3. उद्यमिता (इंटरप्रिनयोरशिप (स्किल डवलपमेंट सहित)) और 4. सहकारिता। इन चार आधार स्तंभों के आधार पर देश में हम इस अभियान को सफल बनाएं।

इस देश व्यापी स्वावलंबी भारत अभियान की सराहना करते हुए उन्होंने कामना की कि आने वाले दिनों में इस अभियान को हर प्रकार की सफलता मिले। यह अभियान एक सार्थक अभियान के रूप में प्रतिस्थापित होकर देश के अंदर एक सफल आर्थिक क्रांति लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान अवश्य देगा। भारत को समृद्ध व सशक्त बनाने की दृष्टि से हम संकल्प लेकर आगे बढ़ें।

 

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दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

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