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हम बच्चों की संस्कार व्यवस्था, के प्रति कितना जागरूक रहते हैं?

मैं कल दिल्ली से मुंबई,पूना प्रवास के लिए ट्रेन में बैठा था! सामने वाली सीट पर एक मां व बेटी बैठे थे! थोड़ी देर में वही हुआ जो अक्सर होता है! बच्ची ने मां से मोबाईल ले लिया व उसमें लग गई!
मुझे लगा कि अगर यह मेरी सगी भतीजी होती तो क्या करता? यह विचार आते ही मेरा संकोच दूर हुआ!
मैने गुड़िया को बुलाया, मां ने भी ईशारे से मेरे पास जाने को कहा! मैने पूछा “क्या नाम है?” वह बोली “आहना! क्लास 3 में पढ़ती हूं,Rian international में”
“पापा का नाम बताओ?” गुड़िया बोली “चन्द्रकृष्ण यादव!” मैने जोर दिया “पूरा नाम ठीक से बताओ?” अब वह माँ की तरफ देखने लगी!उसे भी कुछ नहीं सूझा!
मैने कहा “बोलो, श्री चन्द्रकृष्ण यादव जी!” मैने कहा बड़ो का नाम सम्मान से बुलाना चाहिए!” फिर मैने पूछा “स्कूल की प्रार्थना याद है? कोई देशभक्ति का गीत याद है? गणेश जी को सूंड कैसे लगी?”
बच्ची उत्तर नहीं दे पायी! तो पहले मैने उसे गणेश की कथा सुनाई! फिर एक पहरा गीत- – देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें…याद करवाया! तुरंत बाद बच्ची ने पूरा गीत व कथा सुना दी! इस सारे में 35-40 मिन्ट लग गए!
अब मैंने उसकी मां से पूछा “बहनजी! यह बताओ,यह आहना क्या शब्द है? व बच्ची को प्रार्थना,कहानी सुनाती हो क्या कभी?”
बहनजी बोली “आहना अरबी शब्द है,जिसका अर्थ है-सुबह! पर क्या करूं? मेरा अपना भी आफिस का काम है!कहां से समय निकालूं इतना सब करने के लिए?”
मैने कहा “समय की दिक्कत नहीं,ध्यान करने की बात है! पहली बात हमारे यहां नाम संस्कृत मूल का होता है,आपको ध्यान रखना था! दूसरा अभी जब मैं बच्ची को गीत,कहानी सिखा रहा था तो आप मोबाईल पर लगीं थीं! यही नहीं,आपने तो बच्ची को भी मोबाईल दे दिया था! इस समय कौन सा आफिस या काम था? यह केवल हमें ध्यान रखने की बात है! जैसे हम बच्चों की अच्छी पढ़ाई के बारे जागरूक रहते हैं, ऐसे ही बच्चों की संस्कार व्यवस्था के बारे में भी रहना चाहिए!”
मेरे ये वाक्य सुनकर वह बहनजी तो अपनी कमी स्वीकार कर ही गई,बाकि सवारियां भी सहमत हो इसी विषय की चर्चा करने लग गईं!
मुझे संतोष हुआ कि आज की एक घंटे की शाखा का तो काम हो गया!
नीचे:कल रक्षाबंधन पर अपने ही परिवार की बच्ची आद्या,(कुरूक्षेत्र के डा:ओमप्रकाश जी की दोहती)राखी बांधते हुए! व दूसरे चित्र में पूना जाते हुए बारिश हुई,तो झरने बहने लगे, प्रकृति कितनी सुंदर! अहा! मेरे से फोटो लिए बिना न रहा गया!…मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती..मेरे देश की..
~सतीश- ‘स्वदेशी-चिट्ठी’

दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

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