आज जबलपुर प्रवास पर पहुंचा तो स्मरण आया कि आज 25 सितंबर है पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्मदिन। तो उनके बारे में स्वदेशी चिट्ठी के पाठकों को भी कुछ बताऊं।
एक प्रसंग ऐसा है कि दीनदयाल जी जब जनसंघ के महामंत्री थे तो प्रवास पर लखनऊ पहुंचे। उन्हें अपने बाल कटवाने थे। कार्यालय से वे स्वयं नीचे उतरे और अकेले ही बाल कटवाने चले गए। थोड़ी देर बाद जब वापस आए तो कार्यालय प्रमुख ने पूछा “यह तो बाल कोई बहुत अच्छे नहीं बने। किससे बनवाए?”
तो वे बोले “घुमा कटिंग सैलून से।”
कार्यकर्ता बोला “मैं समझा नहीं”
दीनदयाल जी बोले “घुमा कहते हैं ईंट के हिस्से को। उस पर बैठकर जो नाई बाल काटता है उससे मैंने कटवाए हैं।”
कार्यकर्ता बोला “लेकिन यहां अच्छे बड़े सैलून हैं, फिर आपने ऐसा क्यों किया?”
तो दीनदयाल जी बोले “देखो भाई! बाल तो लगभग सभी एक जैसे ही काटते हैं।यह सस्ता भी बहुत था,ऊपर से उस गरीब को थोड़े पैसे मिल जाएंगे।बड़े वाले नाई तो काम खींच ही लेते हैं।और बिल्कुल अंतिम व्यक्ति कैसे सोचता है,इसका मुझे प्रत्यक्ष बात करने पर अंदाजा भी लग जाता है।”
धन्य! एक अखिल भारतीय पार्टी का संगठन महामंत्री और इतना जमीन से जुड़ा हुआ। उन्होंने न केवल आज की भाजपा(उस समय की जनसंघ) को खड़ा किया बल्कि एकात्म मानव दर्शन का दर्शन भी समाज को देकर अत्यंत बृहद कार्य भी किया।
उन्होंने ही कहा था भारत की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाना हो तो दो ही शब्द काफी हैं स्वदेशी और विकेंद्रीकरण।
साधारण जीवन, वेशभूषा आदर्श प्रचारक।किंतु अद्भुत संगठन कौशल्य और नेतृत्वकर्ता और दर्शन शास्त्री। आज उनकी 108वीं जयंती पर शत-शत नमन।~सतीश
One Response
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