गत तीन दिनों से कश्मीर के प्रवास पर था। परसों जब मैं इस्लामिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी अवंतीपुरा में बोल रहा था और सामने 80 विद्यार्थी व अध्यापक बैठे थे,सभी कश्मीरी। तो मुझे बचपन की याद आ रही थी जब हम गलियों में नारे लगाते थे “जहां हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है…जो कश्मीर हमारा है वह सारे का सारा है!”
और आज वास्तव में वह स्वप्न साकार हुआ जब वहां के सब विद्यार्थी अध्यापक लगभग 2 घंटे तक मेरे से वार्ता कर रहे थे और मेरा स्वदेशी पर भाषण सुन रहे थे। अंत में मैंने उद्घोष लगवाया “नेशन फर्स्ट..स्वदेशी मस्ट” और वे जब दोहरा रहे थे तो मेरा मन भावुक हो उठा।
उससे पहले भी लाल चौक पर तिरंगा ही तिरंगा देखकर, डल झील के किनारे मस्ती से घूमते हुए, वहां के पार्क में सुबह सैर करते हुए मुझे जरा भी यह महसूस नहीं हो रहा था कि मैं लुधियाना में हूं,पानीपत में हूं या श्रीनगर में??
अब वहां 370 हटने के बाद से मानसिकता में परिवर्तन होना शुरू हो गया है।यद्यपि थोड़ा समय लगेगा पर अब सब मानते हैं कि 370 का हटना स्थाई है।हमें अब भारत के सामान्य प्रांत की तरह ही रहना और प्रगति करना चाहिए।
मेरी वहां के पीएचडी चैंबर्स में व्यवसायियों से बात हुई तो कश्मीर यूनिवर्सिटी श्रीनगर की वीसी,प्रध्यापक, विद्यार्थीयों व अन्य प्रबुद्ध वर्ग से भी। मेरा अनुमान है कि उन्हें यह पता था कि मैं स्वदेशी प्रचारक हूं पर फिर भी मुझे वह अपने घर ले गए, उनके बच्चों के साथ सहज परिचय जलपान आदि भी हुआ। वहां स्वावलंबी भारत अभियान की नई टीम भी गठित हो गई जय हो…