4 दिन पहले मैं व कश्मीरी लाल जी जबलपुर गए, विचार वर्ग हेतु। स्टेशन से जो कार्यकर्ता लेकर गए उन्होंने रास्ते में ही कहा “आपको यहां की प्रसिद्ध नींबू चाय पिलाते हैं!”
हमें भी उत्सुकता हुई। एक बहुत सामान्य रेहड़ी के आगे जाकर उन्होंने खड़ा कर दिया। किंतु उसके पास कटे हुए नींबूओं का अंबार देखकर हमने अंदाजा लगा लिया कि अभी तक इसने दो-ढाई सौ कप चाय तो बना ली होगी जबकि अभी सवेरे के 9 ही बजे थे।
तो मैंने रेहड़ी वाले से पूछा “अरे भाई! दिन में कितने कप चाय बेच लेते हो?”
तो थोड़ा संकोच से वह बोला “हजार कप तो हो ही जाता है,बाबूजी!”
मैंने कहा “तुम्हारे सहायक कितने हैं?”
तो 2 लोग उसके पास काम करते हैं। अब ₹10 के हिसाब से ₹10000 की उसकी रोज की सेल है।उसकी रेहड़ी देखकर लगा कि ₹12-13000 से ज्यादा की नहीं थी। यानी जितनी की रेहडी है, उतनी की तो 1 दिन में सेल वह कर लेता है। और 2 लोगों को रोजगार दे रहा है।
दुनिया का कोई भी बिजनेस इस प्रकार का नहीं होगा कि अपनी इन्वेस्टमेंट के बराबर एक ही दिन में कमाई।
किंतु यह सच था और राहुल श्रीवास्तव (महानगर संयोजक,) बताने लगे कि रात 10:00 बजे तक यहां लाइन लगी रहती है।
वास्तव में विकेंद्रित और लघु ही भारत की अर्थव्यवस्था व रोजगार की रीढ़ हैं।
मैनेजमेंट स्कूलों को इस बारे में अध्ययन करना चाहिए कैसे भारतीय लोग थोड़ी पूंजी से अधिक कमाई करते हैं।
चित्र में, उसी नींबू चाय वाली रेहड़ी के पास कश्मीरी लाल जी