हम संस्कारों पर ध्यान कितना रखते हैं?

हम दुर्ग से सोमनाथ जा रहे थे। सामने वाली सीट पर एक दंपति अपनी 4 साल की बच्ची के साथ बैठा था! साइड की सीट पर दूसरा!उनके पास 2 साल का बेटा था!
मैने पहले वाली बच्ची से बात करनी चाही!पर वह मोबाइल छोड़ ही नहीं रही थी! मैने उसके पिता को कहा “बच्ची को मोबाइल देना ठीक नहीं! ये छोटी बच्ची Net चलाना जानती है!
पर पिता ने अनमने मन से कहा ” यह उसमे केवल गेम ही खेलती है!”
मैने कहा “पर यहाँ ट्रेन में न आपको कोई और काम है न इसकी माँ को…फिर आप इसको कोई कहानी क्यों नहीं सुनाते? या खेल नहीं खिलाते?
अब वह चुप हो गए! पर ये क्या? “तेरे रश्के कमर, तू है पहली नज़र…” गीत की आवाज़ आई। बच्ची ने मोबाइल पर गीत लगा लिया था!
अब तो उस सज्जन के पसीने छूट गए!गुस्से में बच्ची से मोबाइल छीन अपनी झेंप मिटाने लगे!
दूसरी सीट से आवाज़ आ रही थी..”नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए…बाकि जो बचा था काले..” दूसरे बच्चे की माँ बोतल से दूध पिलाते उसे लोरी दे रही थी!
मैने पहली बच्ची की माँ की तरफ देखा तो उसने मुस्कुराते हुए आँखे नीचे कर ली, फिर मेरी और देख सिर हिलाया!
मानो कह रही थी “भाई साहिब मै समझ गयी, आगे से ध्यान रखूंगी!”
*कल वापसी पर गुजरात के मेहसाना रुके! वहाँ स्वदेशी की अछी टीम है! वहाँ के संयोजक प्रसिद्ध डाक्टर हैं! डा:केतन भाई चौधरी!
वे अपने मरीज को कुल बिल तो बताते हैं!पर साथ ही लिखा दिखा देते हैं! जितना देना चाहो अपनी हैसियत के मुताबिक! कभी आग्रह नहीं करते यदि वह केवल 10%भी दे!
पर उनका अनुभव है की उन्हें कोई कमी नहीं रहती!और मरीज हमेशा प्रसन्न होकर जाते हैं! वास्तव में वे चिकित्सा को सेवा का माध्यम मानते हैं न की अंधाधुंध कमाई का!
आखिर वे स्वदेशी कार्यकर्ता जो हैं! उन पर गर्व है!
चित्र में:मेहसाना में बैठक व् भोजन करते हम! व बच्चे को लोरी सुनाने वाला दंपति..!
~सतीश— ‘स्वदेशी-चिट्ठी

दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *