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स्वदेशी वेशभूषा में है, सहजता,सुंदरता.. विदेशी में है हल्कापन, तामसिकता..

कुछ दिन पूर्व सतीश जी ने,जो हमारे तब जिला प्रचारक थे, जब मै जगाधरी में 7वीं में पढ़ती थी, मुझे वेशभूषा पर कुछ लिखने को कहा।
दरअसल वे मुम्बई के प्रवास पर थे..वहां उन्होंने कुछ बच्चीयों को विदेशी वेशभुषा में देखा। संयोग से उसी दिन मैने अपनी भाभी के साथ ये फोटो फेसबुक पर लगाया था।
तो इसे देखकर उन्होंने मुझे कहा “आजकल कुछ बचियाँ विदेशियों की नक़ल करते हुए बहुत छोटे व बेहूदा कपड़े पहनती हैं। देखने पर संकोच लगता है! और एक तरफ तुम हो कितनी शालीन वेशभूषा डाली है, कितनी सुन्दर भी लगती है!”
यह कह मुझे इस विषय पर चिट्ठी लिखने को कहा!
पर मै सोच में हूँ! “क्या लिखूँ?”
आजकल तो ऐसी विदेशी वेशभुषा कई अधेड़ उम्र की भी महिलाएं पहनने लगी हैं!
इन विदेशी विचारों की ही देन है, तथाकथित ‘नारी मुक्ति आंदोलन!’
अपना शरीर दिखाना, देर रात की डान्स पार्टियों में बच्चीयों को जाने की अनुमति देना…और फिर रेप आदि की घटनाओं पर ‘सरकारें कुछ नहीं करतीं’ का दोष लगाना! फिर पुरषों को गालियां देना! कहाँ का नारी मुक्ति अभियान है?
यह जो आजकल रेप, छेड़छाड़ की घटनाएँ इतनी बढ़ रही हैं तो एक कारण हमारी वेशभूषा भी है!
ज़रा सोचिए…!
यह भी सोचो, की हम क्या कर सकते हैं…?
शुरूआत अपने से परिवार से व अड़ोस पड़ोस से करिये! किसी घटना होने पर सड़क पर नारे लगाने से कहीं बेहतर है, स्वदेशी वेशभूषा का 50-100 घरों में आग्रह करना…जो सहज शालीन तो होती ही है.. सुंदर भी सर्वाधिक होती है…
सोशल मीडिया पर स्वदेशी वेशभूषा का आग्रह करना..कहीं भी जाएँ,विशेषकर महिलाएं जहाँ हों वहां इस विषय की चर्चा करें, संकोच न करें! देखना बड़ा समर्थन मिलेगा…और शायद इसी कारण कुछ का भला भी हो जायेगा..!
आपका क्या विचार है?
~भावना चौहान (लखनऊ)–‘स्वदेशी-चिट्ठी’
नीचे:विदेशी वेशभूषा में एक पार्टी में एक महिला
और स्वदेशी वेश में मै व मेरी छोटी भाभी

दक्षिण भारत का मैनचेस्टर कहलाता है कोयंबटूर! इस शहर ने 7 लाख से अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष रोजगार दिया हुआ है। अकेले कोयंबटूर की जीडीपी 50 अरब डॉलर है जबकि सारे श्रीलंका की जीडीपी 80 अरब डॉलर है।"भारत का प्रत्येक महानगर कोयंबटूर बन जाए तो भारत की बेरोजगारी भी खत्म हो जाएगी।

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