चार दिन पहले मैं (कश्मीर)श्रीनगर में था।तो सवेरे के समय डल झील के इलाके में घूम रहा था।तभी मैंने एक जगह देखा किसी ने वहां दाने डाले होंगे, जिन्हें चुगने कबूतरों का बड़ा झुंड वहां आ जा रहा था।
वह इतने अधिक थे कि उन्हें देखते,मेरा मन आनंद से भर गया। मैंने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और उसकी रिकॉर्डिंग करने लगा। कब 10 मिनट निकल गए, मुझे पता ही नहीं चला। कुछ फोटो भी मैंने लिए।
वास्तव में प्रकृति की सुंदरता, शांति को अनुभव करने का आजकल हमारे पास समय नहीं रहता।घर, परिवार, बच्चों, कमाई की दौड़ में हम जीवन का वास्तविक आनंद लेना ही भूल गए।
स्वदेशी के बंधु, बहनों से मेरा आग्रह है की सुबह सवेरे 5:00 बजे के आसपास उठकर नजदीक के पार्क में जाओ।कभी पंछियों की चहचहाट सुनो, उगता हुआ सूर्य देखो, हल्की ठंडी हवा को अनुभव करो, दिनभर आपकी ताजगी बहुत अधिक बनी रहेगी। कुछ दिन करके देखो..मैंने तो कई बार किया है। कश्मीर की वादियों में भी और कन्याकुमारी के समुद्र तट पर भी…आनंद ही आनंद करेंगे क्या??~सतीश
नीचे:वही पहली रात्रि कश्मीर स्वावलंबी भारत अभियान के समन्वयक डॉ तौसीफ भट्ट, प्रचारक विनय जी के साथ व प्रकृति के कुछ चित्र,वीडियो स्वदेशी चिट्ठी के पाठकों के लिए