आज सवेरे मैं दिल्ली कार्यालय के सामने शाखा वाले पार्क में गया तो वहां पर एक 40..42 साल की महिला और 10..11 साल का एक थोड़ा मोटा बच्चा दौड़ लगा रहे थे। महिला थोड़ी आगे निकल गई तो मैंने उसे बच्चे को कहा “अरे मोटू! थोड़ा वजन कम कर, देख मम्मी जीत गई और तू हार गया।”
इतना सुनकर वह महिला मेरी तरफ देखते हुए बोली “मैं इसकी बुआ हूं, भाई साहिब!इसको दौड़ा रही हूं, इसको पतला करना है।”
मुझे बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ की दिल्ली शहर में भी बुआ भतीजे का इतना मां बेटे जैसा प्रेम??
दूसरा प्रसंग: चार दिन पूर्व मैं पानीपत में अपने कार्यकर्ता रवि किरण के यहां गया। घर में दोनों भाई, पत्नियां व पांच बच्चे थे।उनकी माताजी बताने लगी “दोनों बहुएं ड्यूटी पर जाती हैं इसलिए बच्चों को मुझे ही संभालना पड़ता है। और रोज लड़ाई इस बात पर होती है कि कौन बच्चा मेरे पास सोएगा? हर रोज एक या दो बच्चे तो मेरे साथ सोते ही है।”
मैं सोच रहा था यह दादी कितनी सुखी है और पोते पोतियां कितने भाग्यवान है और यह पुत्र और पुत्रवधू भी कितने सुखी हैं। उनके संतुष्ट चेहरे व परिवार की एकजुटता बड़ी प्रेरक लग रही थी।
अन्य अनेक संयुक्त परिवार की बातें भी उन्होंने बताई। मैं निष्कर्ष पर था…जब संयुक्त और बड़ा परिवार हो तो सभी खुश प्रसन्न रहते ही हैं।
तभी कहा है “संयुक्त परिवार…सुखी जीवन का आधार!”
नीचे: कुछ दिन पूर्व जब स्वावलंबी टीम के सदस्य व देवरिया से सांसद शशांक मणि जी दिल्ली कार्यालय मिलने आए और कल हिमाचल के प्रांत संयोजक गौतम जी एक अन्य कार्यकर्ता के साथ वहां के मीठे फल लेकर आए